NPT Decoded: परमाणु अप्रसार संधि की भूमिका और ईरान-इज़राइल युद्ध 2025 में इसका महत्व

NPT

परमाणु शक्ति और वैश्विक शांति का संघर्ष

विश्व राजनीति में जब भी सामरिक संतुलन की बात होती है, तो परमाणु हथियारों की उपस्थिति एक गंभीर चिंता का विषय बन जाती है। शीत युद्ध काल से लेकर वर्तमान ईरान-इज़राइल संघर्ष तक, परमाणु शक्ति के नियंत्रण और इसके दुरुपयोग की आशंका ने वैश्विक नेतृत्व को ऐसे उपायों की ओर अग्रसर किया है जिससे परमाणु युद्ध की संभावना को न्यूनतम किया जा सके। इसी परिप्रेक्ष्य में एनपीटी (NPT) या Nuclear Non-Proliferation Treaty का जन्म हुआ।

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एनपीटी (NPT) क्या है? – एक परिचय

एनपीटी (NPT) एक अंतरराष्ट्रीय संधि है, जिसका उद्देश्य है परमाणु हथियारों का प्रसार रोकना, परमाणु निरस्त्रीकरण को प्रोत्साहित करना, और परमाणु ऊर्जा का शांतिपूर्ण उपयोग सुनिश्चित करना। यह संधि 1 जुलाई 1968 को हस्ताक्षरित हुई और 5 मार्च 1970 को प्रभाव में आई। आज विश्व के लगभग 191 देश इसके सदस्य हैं, जिनमें पाँच को “परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र” के रूप में मान्यता प्राप्त है—अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और यूनाइटेड किंगडम।

एनपीटी (NPT) की प्रमुख धाराएं और प्रावधान

एनपीटी की संधि में मुख्यतः तीन स्तंभ हैं:

1. अप्रसार (Non-Proliferation)

यह प्रावधान गैर-परमाणु हथियार देशों को परमाणु हथियार प्राप्त न करने का वचनबद्ध बनाता है। यह भी सुनिश्चित करता है कि परमाणु हथियार संपन्न देश अन्य देशों को यह तकनीक न दें।

2. निरस्त्रीकरण (Disarmament)

एनपीटी परमाणु हथियार संपन्न देशों को निरस्त्रीकरण की दिशा में ठोस कदम उठाने के लिए बाध्य करता है, हालांकि इस पर अक्सर सवाल उठते हैं कि यह केवल एक प्रतीकात्मक कोशिश बनकर रह गया है।

3. परमाणु ऊर्जा का शांतिपूर्ण उपयोग (Peaceful Use of Nuclear Energy)

यह प्रावधान परमाणु ऊर्जा के वैज्ञानिक, तकनीकी और औद्योगिक उपयोग को बढ़ावा देता है, बशर्ते इसका उपयोग हथियारों के लिए न किया जाए। IAEA (International Atomic Energy Agency) इस पर निगरानी रखता है।

एनपीटी (NPT) का वैश्विक महत्व

एनपीटी ने दुनिया को एक साझा मंच दिया है जहां परमाणु शक्ति के दुरुपयोग की संभावना को कम करने की कोशिश की जाती है। यह संधि अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करती है और परमाणु प्रसार को सीमित करती है। हालांकि, यह आलोचना भी झेलती है कि इसमें परमाणु संपन्न देशों को विशेषाधिकार दिए गए हैं और शेष देशों को सीमित कर दिया गया है।

ईरान और एनपीटी (NPT): एक जटिल रिश्ता

ईरान वर्ष 1968 में एनपीटी में शामिल हुआ और इसे 1970 में अनुमोदित किया। इसके बाद ईरान ने अपनी परमाणु नीति को शांतिपूर्ण उपयोग पर आधारित बताया, लेकिन 2002 के बाद से पश्चिमी देशों को शक हुआ कि ईरान परमाणु हथियार विकसित कर रहा है। इसके बाद IAEA और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने ईरान पर कई प्रतिबंध लगाए।

हालांकि 2015 में Joint Comprehensive Plan of Action (JCPOA) नामक समझौता हुआ, जिसे अमेरिका, ईरान, यूरोपीय संघ, रूस और चीन ने मिलकर हस्ताक्षर किया। यह समझौता एनपीटी के ढांचे के अंतर्गत ही परमाणु निगरानी और प्रतिबंध के बीच संतुलन बनाने की कोशिश थी। लेकिन 2018 में अमेरिका के इस समझौते से बाहर हो जाने से फिर से तनाव बढ़ गया।

इज़राइल और एनपीटी (NPT): अलगाव और विवाद

इज़राइल ने कभी एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं किया है। यह देश अपने परमाणु कार्यक्रम को “रक्षा के लिए अनिवार्य” मानता है और न तो इसकी पुष्टि करता है और न ही इनकार करता है कि उसके पास परमाणु हथियार हैं। इसे “न्यूक्लियर एम्बिग्युटी” या “परमाणु अस्पष्टता” की नीति कहा जाता है।

इज़राइल की इस नीति से मध्य पूर्व में सामरिक असंतुलन पैदा होता है, विशेषकर ईरान जैसे देशों के लिए जो एनपीटी के सदस्य होते हुए भी नियंत्रण और निगरानी का सामना करते हैं। यह स्थिति एनपीटी की समानता और निष्पक्षता पर सवाल उठाती है।

ईरान-इज़राइल युद्ध और एनपीटी (NPT) की प्रासंगिकता

2025 के वर्तमान ईरान-इज़राइल संघर्ष में एनपीटी की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है:

1. सामरिक संतुलन में बाधा

एनपीटी ईरान को परमाणु हथियार विकसित करने से रोकता है, जबकि इज़राइल, जो एनपीटी का हिस्सा नहीं है, खुद को असीमित रक्षा अधिकार देता है। इससे मध्य पूर्व में असंतुलन की स्थिति उत्पन्न होती है।

2. IAEA की भूमिका

एनपीटी के तहत IAEA ईरान के परमाणु स्थलों की निगरानी करता है, जबकि इज़राइल पर ऐसा कोई अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध या निरीक्षण नहीं है। यह दोहरा मापदंड ईरान को लगातार खलता है और वह इसे ‘भेदभावपूर्ण नीति’ करार देता है।

3. युद्ध की आशंका और वैश्विक प्रतिक्रिया

ईरान यदि एनपीटी से हटने का निर्णय करता है, तो यह पूरी संधि व्यवस्था को खतरे में डाल देगा। यह कदम अन्य देशों को भी प्रोत्साहित कर सकता है कि वे संधि से बाहर निकलें, जैसा कि उत्तर कोरिया ने किया था।

एनपीटी (NPT) की आलोचनाएं

  1. भेदभावपूर्ण ढांचा – केवल पाँच देशों को आधिकारिक परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र के रूप में मान्यता, जबकि अन्य देशों को सीमित करना।
  2. निरस्त्रीकरण की असफलता – अब तक कोई परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र अपने शस्त्रागार को समाप्त नहीं कर पाया है।
  3. सख्त निगरानी का एकतरफा पालन – जैसे ईरान पर कड़ा निरीक्षण, लेकिन इज़राइल पर कोई बाध्यता नहीं।

एनपीटी (NPT) की सफलता और विफलताएं

सफलताएं:

  • परमाणु प्रसार की गति को रोका गया।
  • परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग में सहयोग को बढ़ाया गया।
  • अंतरराष्ट्रीय स्तर पर IAEA की निगरानी प्रणाली को स्थापित किया गया।

विफलताएं:

  • इज़राइल, भारत और पाकिस्तान जैसे देशों ने एनपीटी से दूरी बनाई।
  • उत्तर कोरिया ने पहले शामिल होकर फिर संधि से बाहर निकलकर परमाणु परीक्षण किया।
  • परमाणु निरस्त्रीकरण को लेकर गंभीर प्रयासों की कमी।

भविष्य की दिशा: क्या एनपीटी (NPT) को और प्रभावी बनाया जा सकता है?

  1. समानता की स्थापना – सभी देशों के लिए एक जैसे मानक तय हों, चाहे वे सदस्य हों या न हों।
  2. निरस्त्रीकरण पर सख्ती – परमाणु संपन्न देशों पर दबाव हो कि वे अपने शस्त्रों को कम करें।
  3. प्रौद्योगिकी हस्तांतरण में पारदर्शिता – शांतिपूर्ण उपयोग के लिए तकनीकी सहायता देने में निष्पक्षता हो।

एनपीटी (NPT) और वैश्विक सुरक्षा की चुनौती

एनपीटी (NPT) एक ऐसा वैश्विक प्रयास है जो परमाणु हथियारों के दुरुपयोग को रोकने की दिशा में कार्य करता है, लेकिन इसका प्रभाव तभी टिकाऊ होगा जब सभी देश समान नियमों के अधीन होंगे। ईरान और इज़राइल के मौजूदा तनाव में एनपीटी (NPT) की प्रासंगिकता और अधिक बढ़ जाती है। यह संधि अब केवल कागज़ी समझौता नहीं रह गई, बल्कि विश्व शांति का मूलभूत स्तंभ बन चुकी है।

यदि अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने इस संकट से कोई सबक नहीं लिया, तो एनपीटी (NPT) का भविष्य भी खतरे में पड़ सकता है और मानवता एक और परमाणु त्रासदी के मुहाने पर जा खड़ी होगी।

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