भारत की चतुर रणनीति: रूस से रिकॉर्ड तेल आयात
प्रमुख बिंदु-
नई दिल्ली: ईरान (Iran) और इजरायल (Israel) के बीच जारी युद्ध ने वैश्विक तेल बाजार में हलचल मचा दी है। इस संकट के बीच भारत ने अपनी तेल आयात रणनीति में बड़ा बदलाव करते हुए रूस से कच्चे तेल की खरीद को अभूतपूर्व स्तर पर बढ़ा दिया है। जून 2025 में भारत ने रूस से प्रतिदिन 20 से 22 लाख बैरल तेल खरीदा, जो पिछले दो सालों में सबसे ज्यादा है। यह मात्रा मध्य पूर्व के प्रमुख आपूर्तिकर्ताओं जैसे सऊदी अरब, इराक, यूएई और कुवैत से आयातित तेल से भी अधिक है। इस कदम से भारत ने न केवल अपनी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित की है, बल्कि कई देशों को पीछे छोड़ दिया है।
युद्ध ने बढ़ाई तेल की कीमतें
ईरान-इजरायल युद्ध के कारण कच्चे तेल की कीमतों में तेज उछाल आया है। 13 जून 2025 को इजरायल ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला किया, जिसके जवाब में अमेरिका ने भी ईरान के तीन स्थानों पर हवाई हमले किए। इस तनाव के बीच ईरान ने स्ट्रेट ऑफ होर्मुज को बंद करने की धमकी दी, जो वैश्विक तेल और गैस आपूर्ति का 20% हिस्सा ढोता है। ब्रेंट क्रूड की कीमत 73.96 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई, जो जनवरी 2025 के बाद सबसे अधिक है। इस उथल-पुथल ने भारत जैसे तेल आयातक देशों के लिए चुनौतियां बढ़ा दी हैं, लेकिन भारत ने इसे अवसर में बदल दिया।

भारत की स्मार्ट रणनीति
भारत, जो दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक और उपभोक्ता है, प्रतिदिन लगभग 51 लाख बैरल कच्चा तेल आयात करता है। पहले भारत अपनी तेल जरूरतों का बड़ा हिस्सा मध्य पूर्व से पूरा करता था, लेकिन फरवरी 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद स्थिति बदल गई। पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण रूसी तेल अंतरराष्ट्रीय बाजार में सस्ता हो गया, जिसका फायदा भारत ने उठाया। केप्लर के आंकड़ों के अनुसार, भारत का रूसी तेल आयात 1% से बढ़कर 40-44% तक पहुंच गया।
जून 2025 में भारत ने रूस से 20-22 लाख बैरल प्रतिदिन तेल खरीदा, जो मध्य पूर्व के कुल आयात (20 लाख बैरल प्रतिदिन) से अधिक है। इसके अलावा, भारत ने अमेरिका से भी आयात बढ़ाया, जो मई के 2.8 लाख बैरल प्रतिदिन से बढ़कर 4.39 लाख बैरल प्रतिदिन हो गया। यह रणनीति भारत की लचीली नीति को दर्शाती है, जिसने मध्य पूर्व पर निर्भरता को कम किया है।

मध्य पूर्व में आपूर्ति पर खतरा
ईरान-इजरायल युद्ध ने मध्य पूर्व से तेल आपूर्ति को जोखिम में डाल दिया है। केप्लर के लीड रिसर्च एनालिस्ट सुमित रितोलिया के अनुसार, शिप मालिक खाली टैंकरों को खाड़ी क्षेत्र में भेजने से हिचक रहे हैं। टैंकरों की संख्या 69 से घटकर 40 रह गई है, और ओमान की खाड़ी से मध्य पूर्व की ओर जाने वाले जहाजों के सिग्नल भी आधे हो गए हैं। इससे मध्य पूर्व से तेल लोडिंग में कमी की आशंका है।
स्ट्रेट ऑफ होर्मुज, जिससे भारत का 40% तेल और आधा गैस आयात होता है, बंद होने की स्थिति में भारत को बड़ा झटका लग सकता है। हालांकि, भारत के पास 9-10 टन का स्ट्रैटेजिक तेल भंडार है, जो आपात स्थिति में कमी को पूरा कर सकता है।

भारत पर क्या होगा असर?
तेल की कीमतों में वृद्धि से भारत में महंगाई बढ़ने का खतरा है। ICRA के अनुसार, यदि कच्चा तेल 10 डॉलर प्रति बैरल महंगा होता है, तो भारत का आयात बिल 13-14 अरब डॉलर बढ़ सकता है। इससे चालू खाता घाटा और निजी निवेश पर भी असर पड़ सकता है। हालांकि, भारत की रूस और अमेरिका से बढ़ती खरीद ने इस जोखिम को कुछ हद तक कम किया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को अपनी तेल आयात रणनीति को और लचीला करना होगा। यदि मध्य पूर्व से आपूर्ति बाधित होती है, तो भारत रूस, अमेरिका, नाइजीरिया, अंगोला और ब्राजील जैसे देशों से आयात बढ़ा सकता है, भले ही शिपिंग लागत अधिक हो। भारत की यह रणनीति न केवल ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करती है, बल्कि वैश्विक संकट में भी उसकी स्थिति को सुदृढ़ बनाती है।

ईरान-इजरायल युद्ध ने वैश्विक तेल बाजार को अस्थिर कर दिया है, लेकिन भारत ने अपनी दूरदर्शी नीति से इस संकट को अवसर में बदला है। रूस से रिकॉर्ड तेल आयात और अमेरिका से बढ़ती खरीद ने भारत को मध्य पूर्व पर निर्भरता से मुक्त करने में मदद की है। हालांकि, भविष्य में तेल आपूर्ति और कीमतों पर नजर रखना जरूरी होगा, ताकि भारत की अर्थव्यवस्था और आम जनता पर पड़ने वाले असर को कम किया जा सके।

राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।