लखनऊ में सनसनीखेज खुलासा: फर्जीवाड़े से हड़पी गई छात्रवृत्ति
प्रमुख बिंदु-
लखनऊ, 21 जून 2025: प्रदेश की राजधानी लखनऊ से एक सनसनीखेज छात्रवृत्ति घोटाला (Scholarship Scam) सामने आया है, जिसमें बंद पड़े मदरसों के नाम पर लाखों रुपये की सरकारी राशि हड़पने का मामला उजागर हुआ है। अल्पसंख्यक कल्याण विभाग ने इस घोटाले के मुख्य आरोपी, मदरसा संचालक रिजवानुल हक के खिलाफ दुबग्गा थाने में FIR दर्ज की है। यह घोटाला राष्ट्रीय छात्रवृत्ति पोर्टल (NSP) के माध्यम से फर्जीवाड़े से अंजाम दिया गया, जिसमें उन्नाव जिले को गृह जनपद दिखाकर छात्रवृत्ति की राशि हासिल की गई।
घोटाले का खुलासा: बंद मदरसों से छात्रवृत्ति का खेल
लखनऊ के दुबग्गा थाना क्षेत्र में स्थित दो मदरसे जामिया सादिया लिल बनात और मदरसा मौलाना अबुल कलाम आजाद इस्लाह अरेबिक स्कूल लंबे समय से बंद पड़े थे। इसके बावजूद, इनके संचालक रिजवानुल हक ने अल्पसंख्यक कल्याण विभाग में छात्रवृत्ति के लिए आवेदन किया। जांच में पता चला कि इन मदरसों की मान्यता केवल कक्षा 1 से 5 तक थी, लेकिन फर्जीवाड़ा करते हुए कक्षा 11 और 12 के छात्रों के नाम पर छात्रवृत्ति हासिल की गई।
जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी सोनू कुमार के अनुसार, केंद्र सरकार की ओर से संदिग्ध संस्थानों की सूची जारी होने के बाद 5 मई 2025 को वक्फ निरीक्षक ने इन मदरसों का निरीक्षण किया। निरीक्षण में दोनों मदरसे बंद मिले और संचालक ने कोई पुराना रिकॉर्ड भी उपलब्ध नहीं कराया।

फर्जीवाड़े का तरीका: उन्नाव से रची साजिश
इस घोटाले की सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि रिजवानुल हक ने लखनऊ में आवेदन खारिज होने के बाद उन्नाव जिले को गृह जनपद दिखाकर NSP पोर्टल पर फर्जी आवेदन किए। इन आवेदनों को उन्नाव से स्वीकृत करवाकर लाखों रुपये की छात्रवृत्ति हड़प ली गई। जांच में सामने आया कि वित्तीय वर्ष 2022-23 में इन फर्जी आवेदनों का बायोमेट्रिक सत्यापन भी लखनऊ में नहीं कराया गया, जिससे यह घोटाला और आसानी से अंजाम दिया गया।
अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के निदेशक के निर्देश पर संदिग्ध संस्थानों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की गई, जिसके तहत दोनों मदरसों को NSP पोर्टल पर ब्लॉक कर दिया गया। साथ ही, इनके यू-डायस कोड को निलंबित करने और मान्यता रद्द करने की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है।

व्यापक जांच और कार्रवाई की मांग
यह घोटाला उत्तर प्रदेश में अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति योजनाओं में हो रहे फर्जीवाड़े का एक और उदाहरण है। पहले भी कई जिलों जैसे बस्ती, मुरादाबाद, उन्नाव और बिजनौर में 14,000 से अधिक फर्जी आवेदक पकड़े गए हैं। इन मामलों में आधार सत्यापन के बाद कई संस्थानों ने फर्जी छात्रों का डेटा अग्रसारित करने की बात स्वीकारी, लेकिन बाद में उन्हें अपना छात्र मानने से इनकार कर दिया। लखनऊ में इस ताजा मामले ने एक बार फिर अल्पसंख्यक कल्याण विभाग और शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह के फर्जीवाड़े को रोकने के लिए तकनीकी और प्रशासनिक स्तर पर और सख्ती की जरूरत है।

लखनऊ पुलिस ने इस मामले में जांच तेज कर दी है, और रिजवानुल हक के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जा रही है। साथ ही, अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय ने सभी राज्यों को निर्देश दिए हैं कि छात्रवृत्ति योजनाओं में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए आधार सत्यापन और भौतिक निरीक्षण को अनिवार्य किया जाए। उत्तर प्रदेश सरकार ने भी इस मामले में कठोर रुख अपनाते हुए दोषी संस्थानों और अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई का वादा किया है। यह घोटाला न केवल सरकारी धन के दुरुपयोग को दर्शाता है, बल्कि उन जरूरतमंद छात्रों के अधिकारों का भी हनन करता है, जिनके लिए यह योजना शुरू की गई थी।

राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।