जानें भारत की पहली डिजिटल जनगणना और जातिगत गणना का हर बात
प्रमुख बिंदु-
India’s Census 2027 Decoded: भारत में हर दस साल में होने वाली जनगणना (Census) न केवल देश की जनसंख्या की गिनती करती है, बल्कि यह सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक बदलावों का एक आइना भी है। यह प्रक्रिया नीति निर्माण, संसाधन आवंटन और विकास योजनाओं के लिए आधार प्रदान करती है। 2027 में होने वाली जनगणना भारत की 16वीं और आजादी के बाद 8वीं जनगणना होगी। यह कई मायनों में ऐतिहासिक होगी, क्योंकि यह भारत की पहली पूरी तरह डिजिटल जनगणना होगी और 1931 के बाद पहली बार इसमें सभी समुदायों की जातिगत गणना शामिल की जाएगी।
केंद्र सरकार ने जनगणना अधिनियम, 1948 की धारा 3 के तहत 16 जून 2025 को राजपत्र में अधिसूचना जारी कर दी है, जिसमें जनगणना 2027 के लिए संदर्भ तिथि 1 मार्च 2027 तय की गई है। हालांकि, लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे बर्फीले और दूरदराज के क्षेत्रों में यह तिथि 1 अक्टूबर 2026 होगी। इस जनगणना में 34 लाख गणनाकर्मी और 1.3 लाख पर्यवेक्षक शामिल होंगे, जो डिजिटल उपकरणों और मोबाइल ऐप्स की मदद से डेटा एकत्र करेंगे।
इस लेख में हम जनगणना 2027 की प्रक्रिया, इसकी नई विशेषताओं, चुनौतियों, और इसके सामाजिक-राजनीतिक प्रभावों को विस्तार से समझेंगे।

जनगणना 2027: दो चरणों में होगी प्रक्रिया
भारत की जनगणना हमेशा से दो चरणों में आयोजित की जाती रही है: गृह-सूचीकरण और आवास गणना (House-listing and Housing Census) और जनसंख्या गणना (Population Enumeration)। ये दोनों चरण कई महीनों तक चलते हैं और इसके लिए व्यापक प्रशासनिक तैयारी की आवश्यकता होती है।
पहला चरण: गृह-सूचीकरण और आवास गणना
यह चरण 2026 में शुरू होगा, जिसमें देश के हर घर और संरचना का दौरा किया जाएगा। गणनाकर्मी, जो मुख्य रूप से स्कूल शिक्षक होंगे, हर घर की स्थिति, सुविधाओं और संपत्तियों के बारे में जानकारी एकत्र करेंगे। इस चरण में निम्नलिखित जानकारी दर्ज की जाएगी:
- घर का प्रकार: पक्का या कच्चा घर, दीवार, छत, और फर्श की सामग्री।
- सुविधाएं: पीने के पानी का स्रोत, बिजली, शौचालय की उपलब्धता और खाना पकाने के लिए ईंधन का प्रकार।
- संपत्ति: टीवी, टेलीफोन, वाहन (दो-पहिया, चार-पहिया, या वाणिज्यिक) और अब नई श्रेणी के रूप में इंटरनेट कनेक्शन और स्मार्टफोन की उपलब्धता।
- नई श्रेणियां: इस बार पहली बार गैस कनेक्शन (पाइप्ड नेचुरल गैस या एलपीजी), अनाज की खपत (जैसे गेहूं, ज्वार, बाजरा) और मोबाइल नंबर जैसी जानकारियां शामिल की जाएंगी।
यह चरण आमतौर पर 1 अप्रैल से 30 सितंबर 2026 तक चलेगा, हालांकि विभिन्न राज्य अपनी सुविधा के अनुसार तारीख चुन सकते हैं। बर्फीले क्षेत्रों में यह पहले शुरू होगा।

दूसरा चरण: जनसंख्या गणना
यह चरण फरवरी 2027 में शुरू होगा और 20-21 दिनों में पूरा होने की उम्मीद है। इस दौरान गणनाकर्मी प्रत्येक व्यक्ति के बारे में विस्तृत जानकारी एकत्र करेंगे, जिसमें शामिल हैं:
- जनसांख्यिकीय जानकारी: नाम, आयु, लिंग, जन्म तिथि, वैवाहिक स्थिति और परिवार के मुखिया से संबंध।
- शिक्षा और रोजगार: शैक्षिक योग्यता, पेशा और रोजगार की स्थिति।
- जाति और धर्म: इस बार सभी समुदायों की जाति की गणना होगी, जो 1931 के बाद पहली बार है।
- प्रवास: प्रवास के कारण, जिसमें जलवायु परिवर्तन या प्राकृतिक आपदाओं के कारण विस्थापन जैसी नई श्रेणियां शामिल हैं।
- स्वास्थ्य और तकनीक: मधुमेह जैसे स्वास्थ्य संबंधी प्रश्न और इंटरनेट या स्मार्टफोन के उपयोग से संबंधित सवाल।
इस चरण में बेघर लोगों को भी शामिल किया जाएगा और डेटा को केंद्रीय स्तर पर संसाधित किया जाएगा। प्रारंभिक आंकड़े 10 दिनों में और अंतिम आंकड़े छह महीने में जारी होने की उम्मीद है।

डिजिटल जनगणना: तकनीकी क्रांति का आगाज
2027 की जनगणना भारत की पहली पूरी तरह डिजिटल जनगणना होगी। यह प्रक्रिया न केवल समय बचाएगी, बल्कि डेटा की सटीकता और पारदर्शिता को भी बढ़ाएगी।
स्व-गणना का विकल्प
पहली बार, नागरिकों को स्व-गणना (Self-Enumeration) का विकल्प दिया जाएगा। लोग सरकार के पोर्टल या मोबाइल ऐप के माध्यम से अपनी जानकारी स्वयं भर सकेंगे। स्व-गणना करने पर एक यूनिक आईडी जनरेट होगी, जिसे गणनाकर्मी के आने पर दिखाना होगा। यह प्रक्रिया डेटा संग्रह को तेज और सुविधाजनक बनाएगी।
मोबाइल ऐप और जीपीएस तकनीक
गणनाकर्मी स्मार्टफोन या हैंडहेल्ड डिवाइस पर प्री-लोडेड मोबाइल ऐप का उपयोग करेंगे। ये ऐप 16 भाषाओं में उपलब्ध होंगे, जिनमें हिंदी, अंग्रेजी और 14 क्षेत्रीय भाषाएं शामिल हैं। इसके अलावा:
- जीपीएस टैगिंग: हर घर को जीपीएस के माध्यम से टैग किया जाएगा, जिससे कवरेज में कोई कमी न रहे।
- कोड डायरेक्ट्री: जाति, पेशा, और भाषा जैसी जानकारी के लिए ड्रॉप-डाउन मेन्यू और मानकीकृत कोड होंगे, जो मैनुअल एंट्री से होने वाली त्रुटियों को कम करेंगे।
- रियल-टाइम मॉनिटरिंग: सेंट्रल मैनेजमेंट एंड मॉनिटरिंग सिस्टम (CMMS) के जरिए प्रगति को ट्रैक किया जाएगा और त्रुटियों को तुरंत ठीक किया जाएगा।
डेटा सुरक्षा और गोपनीयता
डिजिटल जनगणना के साथ डेटा सुरक्षा एक बड़ी चुनौती है। सरकार ने इसके लिए कड़े इंतजाम किए हैं, जैसे डेटा को तीसरे पक्ष के साथ साझा न करना और क्लाउड-बेस्ड सिस्टम में सुरक्षित स्टोरेज। ऑफलाइन मोड में काम करने की सुविधा भी दी गई है, ताकि दूरदराज के क्षेत्रों में कनेक्टिविटी की समस्या न आए।

जातिगत गणना: 90 साल बाद वापसी
1931 के बाद पहली बार, जनगणना 2027 में सभी समुदायों की जातिगत गणना शामिल होगी। यह निर्णय लंबे समय से विपक्षी दलों जैसे राजद, सपा, डीएमके और कांग्रेस की मांग थी।
जातिगत गणना सामाजिक न्याय और कल्याणकारी योजनाओं के लिए महत्वपूर्ण डेटा प्रदान करेगी। यह निम्नलिखित प्रभाव डालेगी:
- आरक्षण नीति: ओबीसी और अन्य समुदायों के लिए आरक्षण की सीमा (वर्तमान में 50%) पर फिर से बहस हो सकती है।
- सामाजिक समीकरण: जातिगत आंकड़े सामाजिक संरचना को समझने और नीतियों को अधिक समावेशी बनाने में मदद करेंगे।
- राजनीतिक प्रभाव: यह डेटा परिसीमन और विधानसभा/लोकसभा सीटों के आवंटन को प्रभावित कर सकता है।
हालांकि, कुछ राजनीतिक दल, विशेष रूप से बीजेपी, इस मुद्दे पर सतर्क रुख अपनाते रहे हैं, क्योंकि यह सामाजिक और राजनीतिक समीकरणों को बदल सकता है।
जातिगत गणना के लिए जनगणना अधिनियम, 1948 में संशोधन की आवश्यकता होगी, क्योंकि वर्तमान में इसमें केवल अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) की गणना का प्रावधान है। इसके अलावा, जातियों की संख्या (लगभग 2,650 ओबीसी, 1,270 SC और 748 ST) को मानकीकृत करना एक जटिल कार्य होगा।

नई श्रेणियां: आधुनिक भारत का प्रतिबिंब
2027 की जनगणना में कई नई श्रेणियां शामिल की गई हैं, जो भारत के बदलते सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य को दर्शाती हैं:
- इंटरनेट और स्मार्टफोन: डिजिटल कनेक्टिविटी अब विकास का एक महत्वपूर्ण सूचक है। इसलिए, घरों में इंटरनेट और स्मार्टफोन की उपलब्धता दर्ज की जाएगी।
- वाहन स्वामित्व: दो-पहिया, चार-पहिया और वाणिज्यिक वाहनों के स्वामित्व को अलग-अलग श्रेणियों में रिकॉर्ड किया जाएगा।
- जलवायु परिवर्तन और प्रवास: पहली बार, जलवायु परिवर्तन या प्राकृतिक आपदाओं के कारण विस्थापन को प्रवास के कारणों में शामिल किया गया है।
- लिंग समावेश: ट्रांसजेंडर पहचान को स्पष्ट रूप से दर्ज करने का विकल्प होगा।
ये नई श्रेणियां नीति निर्माताओं को डिजिटल डिवाइड, पर्यावरणीय चुनौतियों, और सामाजिक समावेश को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेंगी।

चुनौतियां और समाधान
डिजिटल जनगणना और जातिगत गणना की शुरुआत के साथ कई चुनौतियां सामने आएंगी:
- डिजिटल साक्षरता: ग्रामीण क्षेत्रों में गणनाकर्मियों और नागरिकों की डिजिटल साक्षरता एक बड़ी चुनौती है। इसके लिए व्यापक प्रशिक्षण मॉड्यूल, क्षेत्रीय भाषा इंटरफेस और उपयोगकर्ता-अनुकूल ऐप डिजाइन किए गए हैं।
- कनेक्टिविटी: दूरदराज के क्षेत्रों में इंटरनेट की कमी को ऑफलाइन मोड और ऑटो-सिंक्रनाइजेशन से हल किया जाएगा।
- डेटा गोपनीयता: डेटा लीक की आशंका को कम करने के लिए कड़े सुरक्षा प्रोटोकॉल लागू किए गए हैं।
- प्रतिरोध: कुछ लोग अपनी जानकारी, विशेष रूप से जाति, साझा करने में हिचक सकते हैं। इसके लिए गणनाकर्मियों को संवेदनशीलता और कानूनी प्रावधानों का प्रशिक्षण दिया गया है।
सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव
जनगणना 2027 के आंकड़े न केवल नीति निर्माण को प्रभावित करेंगे, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य को भी बदल सकते हैं। जातिगत गणना से आरक्षण नीतियों, संसाधन आवंटन और परिसीमन पर बहस तेज हो सकती है। दक्षिणी राज्यों में, जहां जनसंख्या वृद्धि दर कम है, परिसीमन के कारण संसदीय सीटों की संख्या में कमी की आशंका है, जिससे राजनीतिक विवाद शुरू हो चुका है।
इसके अलावा, डिजिटल जनगणना से प्राप्त आंकड़े सरकार को डिजिटल डिवाइड, शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियों से निपटने में मदद करेंगे। यह डेटा सामाजिक कल्याण योजनाओं को अधिक लक्षित और प्रभावी बनाने में भी सहायक होगा।s

जनगणना 2027 भारत के लिए एक नया अध्याय शुरू करेगी। डिजिटल तकनीक और जातिगत गणना के साथ, यह प्रक्रिया न केवल अधिक कुशल और सटीक होगी, बल्कि यह देश की सामाजिक-आर्थिक संरचना को समझने में भी एक मील का पत्थर साबित होगी। हालांकि, डिजिटल साक्षरता, डेटा सुरक्षा और सामाजिक संवेदनशीलता जैसी चुनौतियों का समाधान करना जरूरी होगा।
यह जनगणना न केवल भारत की जनसंख्या की गिनती करेगी, बल्कि यह देश के भविष्य को आकार देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। जैसे-जैसे 2027 नजदीक आएगा, इस प्रक्रिया पर देश की नजरें टिकी रहेंगी, क्योंकि इसके परिणाम न केवल नीतियों को प्रभावित करेंगे, बल्कि भारत के सामाजिक ताने-बाने को भी नया रूप देंगे।
राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।