पहलगाम हमले के बाद भारत का बड़ा फैसला: सिंधु जल संधि निलंबित
प्रमुख बिंदु
INDUS WATER TREATY: 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम (Pahalgam) में हुए भीषण आतंकी हमले ने देश को झकझोर दिया। लश्कर-ए-तैयबा के सहयोगी संगठन TRF द्वारा किए गए इस हमले में 27 निर्दोष लोगों की जान चली गई। घटना के ठीक दो दिन बाद भारत सरकार ने एक अप्रत्याशित लेकिन निर्णायक कदम उठाते हुए, 1960 से चली आ रही सिंधु जल संधि को अनिश्चितकाल के लिए निलंबित करने की घोषणा कर दी।
यह पहली बार है जब भारत ने इस ऐतिहासिक संधि को प्रभावहीन करने का निर्णय लिया है। इस कदम के पीछे क्या केवल भावनात्मक आक्रोश है या एक दीर्घकालिक रणनीति छिपी है? इसका क्षेत्रीय और वैश्विक क्या प्रभाव होगा?
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सिंधु जल संधि: पृष्ठभूमि और प्रावधान
1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता में सिंधु जल संधि (INDUS WATER TREATY) पर हस्ताक्षर हुए। इसके तहत, छह नदियों — सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलज — के जल के उपयोग को लेकर अधिकारों का बंटवारा तय किया गया।
- पूर्वी नदियाँ (रावी, ब्यास, सतलज): भारत को पूर्ण उपयोग का अधिकार मिला।
- पश्चिमी नदियाँ (सिंधु, झेलम, चिनाब): पाकिस्तान को प्रमुख उपयोगकर्ता माना गया। भारत को सीमित, गैर-उपभोगी उपयोग जैसे बिजली उत्पादन, नौवहन और मत्स्य पालन की अनुमति दी गई।
इसके साथ ही एक स्थायी सिंधु आयोग (Permanent Indus Commission) का गठन हुआ, जो संधि से संबंधित किसी भी विवाद को सुलझाने के लिए तीन-स्तरीय तंत्र के तहत कार्य करता है —
- पीआईसी (Permanent Indus Commission)
- तटस्थ विशेषज्ञ (Neutral Expert)
- मध्यस्थता न्यायालय (Permanent Court of Arbitration, हेग)

भारत का निर्णय
भारत का कहना है कि “खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते।” यह बयान एक स्पष्ट संदेश है कि सीमा पार से बार-बार होने वाले आतंकवाद को अब केवल सैन्य या कूटनीतिक प्रतिक्रियाओं से नहीं, बल्कि रणनीतिक संसाधनों के उपयोग से भी उत्तर दिया जाएगा।
भारत ने लंबे समय तक संयम बरता। पश्चिमी नदियों पर अपने वैध अधिकारों का पूर्ण उपयोग नहीं किया, लेकिन अब भारत इस नीति से हटता दिख रहा है
पाकिस्तान पर संभावित प्रभाव
पाकिस्तान की कृषि-प्रधान अर्थव्यवस्था में सिंचाई की भूमिका 90% से अधिक है। विशेषकर पंजाब और सिंध जैसे क्षेत्रों की जलापूर्ति झेलम और चिनाब नदियों पर निर्भर है।
भारत यदि इन नदियों के प्रवाह को नियंत्रित करता है — चाहे वह जल-विद्युत परियोजनाओं या जल-भंडारण के माध्यम से हो — तो:
- कृषि उत्पादन पर विपरीत असर
- पीने के पानी की किल्लत
- औद्योगिक ठहराव
- सामाजिक और राजनीतिक अस्थिरता
भारत का यह कदम एक हाइब्रिड वारफेयर रणनीति का संकेत देता है — यानी सैन्य युद्ध के बिना दबाव बनाने का कूटनीतिक और रणनीतिक प्रयास। भारत जल को एक रणनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल कर सकता है, जैसा कि चीन ब्रह्मपुत्र नदी के मामलों में करता रहा है
निर्णय के कुछ अंतरराष्ट्रीय संकेत भी हैं:
- भारत की वैश्विक छवि — एक न्यायप्रिय और संतुलित राष्ट्र की छवि पर सवाल खड़े हो सकते हैं, विशेषकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता की भारत की दावेदारी के संदर्भ में।
- क्षेत्रीय जल-नीति पर असर — नेपाल, बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों के साथ भारत के जल संबंधों पर भी असर पड़ सकता है। वे भारत की नई नीति को लेकर सशंकित हो सकते हैं।