Murshidabad Violence: जल रहा है बंगाल! वक्फ आंदोलन के नाम पर हिंसा, पलायन और त्रासदी!

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Murshidabad Violence: बंगाल में वक्फ कानून आंदोलन बना त्रासदी!

Murshidabad Violence: पश्चिम बंगाल का मुर्शिदाबाद जिला, हाल के दिनों में हिंसा की आग में झुलस रहा है। केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित वक्फ (संशोधन) विधेयक के विरोध में शुरू हुए प्रदर्शन 8 अप्रैल, 2025 से हिंसक रूप ले चुके हैं, जिसने न केवल कानून-व्यवस्था को चुनौती दी बल्कि स्थानीय हिंदू समुदाय के लिए भय और अनिश्चितता का माहौल पैदा कर दिया। इस हिंसा में तीन लोगों की जान गई, सैकड़ों घायल हुए, और हजारों हिंदू परिवार अपने घर-गांव छोड़कर पलायन करने को मजबूर हुए। यह रिपोर्ट हिंसा के कारणों, उपद्रवियों की हरकतों, हिंदू नागरिकों की पीड़ा, और सरकार की नाकामी को उजागर करती है, जिसमें विश्वसनीय स्रोतों का उपयोग किया गया है ताकि सत्य सामने आए।

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हिंसा की शुरुआत और उसका स्वरूप

मुर्शिदाबाद में वक्फ (संशोधन) विधेयक के खिलाफ विरोध प्रदर्शन 8 अप्रैल, 2025 को शुरू हुए, जो जल्द ही हिंसक हो गए। जंगीपुर, सुती, धुलियान, और शमशेरगंज जैसे मुस्लिम-बहुल इलाकों में प्रदर्शनकारियों ने सड़कों पर उतरकर पथराव, आगजनी, और तोड़फोड़ की। पुलिस वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया, राष्ट्रीय राजमार्ग जाम किए गए, और रेल सेवाएं छह घंटे तक ठप रहीं। समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, हिंसा में 150 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें से 70 सुती और 41 शमशेरगंज से थे।

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पुलिस ने हिंसा को “पूर्व-नियोजित” और “समन्वित” साजिश करार दिया, जिसमें बांग्लादेशी कट्टरपंथी संगठन एसडीपीआई और अन्य समूहों का हाथ होने के इनपुट मिले। एक अफवाह, जिसमें दावा किया गया कि पुलिस कार्रवाई में एक प्रदर्शनकारी की मौत हो गई, इसने भीड़ को और उग्र कर दिया। इसके परिणामस्वरूप, पुलिस पर पथराव और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया। बीजेपी नेता सुवेंदु अधिकारी ने इसे “लोकतंत्र और शासन पर हमला” बताया, जबकि टीएमसी नेता कुणाल घोष ने केंद्रीय एजेंसियों और बीएसएफ पर हिंसा भड़काने का आरोप लगाया।

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हिंदू नागरिकों की पीड़ा और पलायन

हिंसा का सबसे दर्दनाक पहलू हिंदू समुदाय पर इसका प्रभाव रहा। मुर्शिदाबाद के धुलियान, सुती, और शमशेरगंज जैसे क्षेत्रों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं जहां हिंसा करने वाले कट्टरपंथियों ने उन्हें निशाना बनाया। बीजेपी नेता सुवेंदु अधिकारी ने दावा किया कि धुलियान से 400 से अधिक हिंदू परिवार, धार्मिक कट्टरपंथियों के डर से, भागीरथी नदी पार कर मालदा के लालपुर हाई स्कूल, देवनापुर-सोवापुर जीपी, और बैसनबनगर में शरण लेने को मजबूर हुए। स्थानीय प्रशासन ने इन परिवारों के लिए स्कूलों में अस्थायी आश्रय और भोजन की व्यवस्था की, लेकिन यह उनके दर्द को कम करने के लिए काफी नहीं है।

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हिंसा में मारे गए तीन लोगों में दो हिंदू, हरगोविंद दास (65) और चंदन दास (35), पिता-पुत्र थे, जो मूर्तिकला का काम करते थे। भीड़ ने उन्हें घर से खींचकर पीट-पीटकर मार डाला। तीसरा मृतक, एक नाबालिग एजाज़ अहमद (17) है जो गोली लगने से मारा गया। इन हत्याओं ने हिंदू समुदाय में दहशत फैला दी। एक स्थानीय निवासी, जिसने नाम न छापने की शर्त पर बीबीसी से बात की, उसने कहा, “हमारी दुकानें जला दी गईं, घरों पर हमले हुए। हम रातों को सो नहीं पाते, क्योंकि कभी भी भीड़ आ सकती है।”

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हिंदू परिवारों का कहना है कि उनकी पीढ़ियों से चली आ रही जमीन और संपत्ति अब खतरे में है। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने आरोप लगाया कि टीएमसी की “तुष्टिकरण की राजनीति” ने कट्टरपंथी तत्वों को बढ़ावा दिया, जिसके चलते हिंदू “अपनी ही जमीन पर जान बचाने के लिए भाग रहे हैं।” यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी कहा कि मारे गए हिंदू “दलित और वंचित” थे, जिन्हें वक्फ जमीन का लाभ मिलने वाला था।

उपद्रवियों की हरकतें

उपद्रवियों ने हिंसा को व्यवस्थित रूप से अंजाम दिया। उन्होंने न केवल पुलिस और सरकारी संपत्ति को निशाना बनाया बल्कि हिंदू समुदाय की दुकानों, फार्मेसियों और शॉपिंग मॉल्स में लूटपाट और तोड़फोड़ की। धुलियान के एक वार्ड में बमबारी की घटनाएं भी सामने आईं। रविवार, 13 अप्रैल, 2025 को मुर्शिदाबाद की सड़कें सुनसान थीं, दुकानें बंद थीं और लोग घरों में कैद रहे।

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पुलिस ने हिंसा में शामिल लोगों के खिलाफ छापेमारी शुरू की और 200 से अधिक गिरफ्तारियां कीं। डीजीपी राजीव कुमार ने कहा, “यह अच्छाई और बुराई की लड़ाई है। हम अफवाह फैलाने वालों और हिंसा भड़काने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करेंगे।” फिर भी, स्थानीय हिंदुओं का आरोप है कि पुलिस शुरुआत में मूकदर्शक बनी रही, और केंद्रीय बलों की तैनाती के बाद ही स्थिति कुछ हद तक नियंत्रण में आई।

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सरकार की नाकामी और आलोचना

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 12 अप्रैल, 2025 को घोषणा की कि वक्फ (संशोधन) विधेयक राज्य में लागू नहीं होगा। उन्होंने लोगों से शांति बनाए रखने और “धर्म के नाम पर अधर्मी व्यवहार” न करने की अपील की। हालांकि, बीजेपी ने इसे “राजनीतिक नौटंकी” करार दिया, यह तर्क देते हुए कि यह कानून संसद द्वारा पारित है और पूरे देश में लागू होगा।

कलकत्ता हाईकोर्ट ने हिंसा पर सख्त रुख अपनाते हुए 12 अप्रैल को केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) और बीएसएफ की तैनाती का आदेश दिया। जस्टिस सौमेन सेन ने कहा, “अदालत ऐसी स्थिति में आंखें बंद नहीं कर सकती। नागरिकों की सुरक्षा राज्य की संवैधानिक जिम्मेदारी है।” कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार से 17 अप्रैल तक विस्तृत रिपोर्ट मांगी।

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बीजेपी नेताओं ने ममता सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। दिलीप घोष ने कहा, “क्या कोलकाता ढाका बन गया है? बंगाल में हमास, फलीस्तीन, पाकिस्तान, सीरिया और ISIS तक कबझंडे लहराए जाते हैं। लेकिन गाड़ियों से रामनवमी के भगवा ध्वज को हटा दिया जाता है!” सुवेंदु अधिकारी ने हिंसा की जांच एनआईए से कराने की मांग की, यह दावा करते हुए कि इसमें “राष्ट्र-विरोधी गतिविधियां” शामिल हैं। वहीं मुर्शिदाबाद हिंसा में घायल लोगों से मिलने पहुंचे बरहामपुर से कांग्रेस के पूर्व सांसद अधीर रंजन चौधरी ने कहा, “बहुत सारे लोग अस्पताल में भर्ती हैं, लेकिन पुलिस और राज्य सरकार चुप है… लोग जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं, फिर भी राज्य सरकार चुप है।”

सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव

मुर्शिदाबाद की हिंसा ने पश्चिम बंगाल में सामाजिक और राजनीतिक तनाव को और बढ़ा दिया है। 2026 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले, टीएमसी और बीजेपी के बीच आरोप-प्रत्यारोप तेज हो गए हैं। टीएमसी का दावा है कि बीजेपी और केंद्रीय एजेंसियां हिंसा भड़काकर राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश कर रही हैं, जबकि बीजेपी का कहना है कि टीएमसी की “तुष्टिकरण की राजनीति” ने राज्य को अराजकता की ओर धकेल दिया।

हिंदू समुदाय के लिए यह हिंसा केवल जान-माल का नुकसान नहीं बल्कि उनकी पहचान और सुरक्षा पर हमला है। एक पलायनकारी परिवार ने एबीपी न्यूज को बताया, “हमारा सब कुछ छिन गया। हमारे बच्चों का भविष्य अँधेरे में है। सरकार हमें सुरक्षा देने में नाकाम रही।”

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मुर्शिदाबाद की हिंसा ने एक बार फिर पश्चिम बंगाल में कानून-व्यवस्था और सामाजिक सद्भाव की कमजोर स्थिति को उजागर किया है। हिंदू नागरिकों की पीड़ा, उनके घर-गांव छोड़ने की मजबूरी, और उपद्रवियों की बर्बरता ने यह सवाल उठाया है कि क्या राज्य सरकार अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी निभा पा रही है? केंद्र और राज्य सरकार की ओर से ठोस कदम उठाए जाने की जरूरत है ताकि हिंसा पर अंकुश लगे और हिंदू समुदाय को सुरक्षा और न्याय मिले।

(ANI, ABP, BBC और PTI के इनपुट के साथ)

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