प्रमुख बिंदु-
नई दिल्ली: 2008 के खौफनाक मुंबई हमलों के 17 साल बाद पूर्व गृह मंत्री पी. चिदंबरम (P Chidambaram) ने एक टीवी इंटरव्यू में ऐसा खुलासा किया है, जो राजनीतिक हलकों में भूचाल ला रहा है। उन्होंने बताया कि 26/11 के बाद उनके मन में पाकिस्तान पर सैन्य कार्रवाई का ख्याल आया था, लेकिन अमेरिकी दबाव और तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार के फैसले ने इसे रोक दिया। यह बयान न सिर्फ पुरानी जख्मों को हरा कर रहा है, बल्कि वर्तमान राजनीति में भी बहस छेड़ रहा है।
चिदंबरम का स्वीकारा: बदले की आग में जलते मन का राज
मंगलवार को एक प्रमुख न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में चिदंबरम ने बिना लाग-लपेट के अपनी भावनाओं का इजहार किया। उन्होंने कहा, “हमले के बाद मेरे मन में प्रतिशोध की भावना जरूर जगी थी। मैं पाकिस्तान के खिलाफ जवाबी कार्रवाई के पक्ष में था।” लेकिन, उन्होंने स्वीकार किया कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और अन्य वरिष्ठ नेताओं के साथ चर्चा के बाद सरकार ने यह कदम टाल दिया। चिदंबरम के मुताबिक, विदेश मंत्रालय का रुख साफ था- सीधी सैन्य कार्रवाई से बचना चाहिए, क्योंकि इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जटिलताएं बढ़ सकती थीं।
यह खुलासा इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि 26/11 ने भारत को सदमे में डाल दिया था। 60 घंटों तक चले इस हमले में 10 पाकिस्तानी आतंकियों ने मुंबई को निशाना बनाया। ताज होटल, ओबेरॉय ट्रिडेंट, सीएसटी स्टेशन, नरीमन हाउस और कामा अस्पताल जैसे स्थानों पर अंधाधुंध फायरिंग से 175 निर्दोषों की जान चली गई, जबकि सैकड़ों घायल हुए। चिदंबरम ने बताया कि हमले के महज 2-3 दिन बाद ही तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री कोंडोलीजा राइस दिल्ली पहुंचीं। उन्होंने चिदंबरम और मनमोहन सिंह से मुलाकात की और साफ लफ्जों में कहा, “कृपया रिएक्ट न करें। युद्ध मत छेड़िए।” चिदंबरम ने जवाब दिया कि यह फैसला भारत सरकार का होगा, लेकिन दबाव इतना था कि अंत में कार्रवाई रुक गई।
After 17 years, Chidambaram, Former Home Minister admits what the nation knew — 26/11 was mishandled due to pressure from foreign powers. Too little, too late.#CongressFailedNationalSecurity pic.twitter.com/bbWWM5X5gu
— Pralhad Joshi (@JoshiPralhad) September 29, 2025
वैश्विक दबाव की चाबुक ने रोका कांग्रेस को
चिदंबरम के बयान से साफ होता है कि 26/11 के बाद भारत अकेला नहीं था। पूरी दुनिया ने मिलकर भारत को रोकने की कोशिश की। उन्होंने कहा, “हमें युद्ध न करने के लिए हर तरफ से समझाया जा रहा था। अमेरिका के अलावा अन्य देश भी चिंतित थे।” विशेषज्ञों का मानना है कि उस समय वैश्विक अर्थव्यवस्था डगमगा रही थी और भारत-पाकिस्तान के बीच जंग से दक्षिण एशिया में अस्थिरता बढ़ने का खतरा था। राइस की यात्रा को डिप्लोमेटिक दबाव का प्रतीक माना जा रहा है, जो अमेरिका की ‘वॉर ऑन टेरर’ नीति का हिस्सा था। पाकिस्तान को तालिबान के खिलाफ सहयोगी मानते हुए अमेरिका ने भारत को कूटनीतिक रास्ता अपनाने की सलाह दी।

हालांकि, चिदंबरम ने यह भी जोड़ा कि सरकार ने गैर-सैन्य तरीकों से पाकिस्तान पर दबाव बनाया। डोसीयर सौंपे गए, संयुक्त राष्ट्र में लश्कर-ए-तैयबा को आतंकी संगठन घोषित कराया गया। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह काफी था? कई विश्लेषक आज कहते हैं कि अगर तब सख्त कदम उठाए जाते, तो शायद भविष्य के हमलों पर अंकुश लग जाता। चिदंबरम का यह इकबाल पुरानी बहस को फिर जिंदा कर रहा है- क्या कूटनीति हमेशा सही रास्ता होती है?
भाजपा का तीखा प्रहार: सोनिया का क्या रोल था?
चिदंबरम के बयान पर भाजपा ने तुरंत हमला बोला। केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने सोशल मीडिया पर इंटरव्यू की क्लिप शेयर करते हुए लिखा, “पूर्व गृह मंत्री ने कबूल लिया कि मुंबई हमलों को विदेशी दबाव के कारण सही तरीके से हैंडल नहीं किया गया।”
भाजपा प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने चिदंबरम पर व्यक्तिगत निशाना साधा। उन्होंने कहा, “चिदंबरम पहले गृह मंत्री बनने से हिचकिचा रहे थे, बदला लेना चाहते थे, लेकिन बाकी केंद्रीय सदस्यों ने उन्हें मना लिया। सोनिया गांधी का इस फैसले में क्या रोल था?” भाजपा का कहना है कि यह ‘टू लिटिल टू लेट’ है- इतने साल बाद खुलासा क्यों?
भाजपा नेता यह भी याद दिला रहे हैं कि वर्तमान एनडीए सरकार ने पुलवामा हमले के बाद बालाकोट एयरस्ट्राइक जैसे कदम उठाए, जो 26/11 की सीख पर आधारित थे। चिदंबरम के बयान ने कांग्रेस को रक्षात्मक मोड में ला दिया है। पार्टी का दावा है कि यूपीए ने कानूनी और कूटनीतिक मोर्चे पर मजबूत कदम उठाए, जिसका फायदा आज हो रहा है। लेकिन राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह बहस 2024 चुनावों की यादें ताजा कर रही है, जहां राष्ट्रीय सुरक्षा बड़ा मुद्दा था।
26/11 की काली रात
26/11 की यादें आज भी ताजा हैं। 26 नवंबर 2008 को रात 9:30 बजे 10 आतंकियों ने मुंबई पर हमला बोला। एनएसजी कमांडो और स्थानीय पुलिस ने 60 घंटों की कटु लड़ाई लड़ी। नौ आतंकियों को ढेर कर दिया गया, लेकिन एक- अजमल कसाब- जिंदा पकड़ा गया। जुहू चौपाटी से गिरफ्तार कसाब ने पूछताछ में लश्कर-ए-तैयबा का नाम लिया। जनवरी 2009 में स्पेशल कोर्ट में ट्रायल शुरू हुआ। 11,000 पन्नों की चार्जशीट दाखिल हुई। कसाब की उम्र पर विवाद चला, लेकिन मार्च 2010 तक सुनवाई पूरी हो गई।

3 मई 2010 को कोर्ट ने उसे दोषी ठहराया और 6 मई को फांसी की सजा सुनाई। बॉम्बे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को बरकरार रखा। 2012 में दया याचिका खारिज होने के बाद 21 नवंबर को आर्थर रोड जेल में कसाब को फांसी दी गई। यह भारत की न्यायिक व्यवस्था की जीत थी, लेकिन कई सवाल अनुत्तरित रहे- जैसे हाफिज सईद का क्या हुआ?

तहव्वुर राणा प्रत्यर्पण पर बोले- ‘पिछली सरकार भी क्रेडिट की हकदार’
हाल के महीनों में 26/11 का एक और अध्याय बंद हुआ। अप्रैल 2025 में मास्टरमाइंड तहव्वुर राणा को अमेरिका से भारत प्रत्यर्पित किया गया। शिकागो में 2009 से जेल में बंद राणा पर मुंबई और डेनमार्क हमलों में सहयोग का आरोप था। डेविड हेडली की गवाही पर उसे 14 साल की सजा हुई थी।

चिदंबरम ने कहा, “एनडीए सरकार क्रेडिट ले सकती है, लेकिन यूपीए ने 2009 से ही प्रत्यर्पण प्रक्रिया शुरू की थी। पिछली सरकार को भी श्रेय मिलना चाहिए।” कांग्रेस का तर्क है कि यह लंबी कूटनीतिक जद्दोजहद का नतीजा है। राणा के प्रत्यर्पण से भारत को मजबूत सबूत मिले हैं, जो लश्कर के नेटवर्क को उजागर करेंगे।
राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।