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एटा (UP), 21 सितंबर 2025: उत्तर प्रदेश के एटा जिले में एक ऐसी मिसाल बनी है, जो सास-बहू के रिश्ते को नई परिभाषा दे रही है। दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के अनुसार, डिलीवरी के दौरान इंफेक्शन से जूझ रही 28 वर्षीय पूजा की दोनों किडनियां 75 फीसदी डैमेज हो गई थीं। जब अपनी मां से मदद मांगी, तो उन्होंने मना कर दिया। लेकिन सास बीनम देवी ने बिना हिचक अपनी एक किडनी दान कर दी। लखनऊ के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में 13 सितंबर को हुए सफल ट्रांसप्लांट ने पूजा को नई जिंदगी दी।
डिलीवरी का दर्द बना किडनी का संकट
पूजा, मूल रूप से फर्रुखाबाद जिले के जिजौटा बुजुर्ग गांव की रहने वाली हैं। 27 नवंबर 2023 को उनकी शादी एटा के अश्विनी प्रताप सिंह (30) से हुई थी। शादी के चार महीने बाद फरवरी 2025 में पूजा ने एक बेटी को जन्म दिया। खुशी का यह पल जल्द ही दर्द में बदल गया। डिलीवरी के दौरान ऑपरेशन में पेट में गंभीर इंफेक्शन फैल गया। डॉक्टरों ने बताया कि इंफेक्शन ने पूजा की दोनों किडनियों को 75 फीसदी तक नुकसान पहुंचा दिया है। क्रिएटिन लेवल बढ़ने लगा, और डायलिसिस की नौबत आ गई।
परिवार घबरा गया, पहले कानपुर के अस्पतालों में इलाज कराया, लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ। फिर डॉक्टरों ने लखनऊ रेफर किया। यहां जांच में साफ हो गया कि ट्रांसप्लांट ही एकमात्र रास्ता है। पूजा के पति अश्विनी ने बताया, “डॉक्टरों ने कहा कि देरी से जान को खतरा हो सकता है। हमने परिवार से मदद मांगी, लेकिन शुरुआत में कोई आगे नहीं आया।” सात महीने तक पूजा दर्द से जूझती रहीं। वे अपनी नवजात बेटी को गोद में ले भी नहीं पाती थीं। रोज दवा, डायलिसिस और डॉक्टरों के चक्कर ने परिवार को तोड़ने की कगार पर ला खड़ा किया।
मां का इनकार, सास का दान
जब ट्रांसप्लांट की बारी आई, तो सबसे पहले पूजा ने अपनी मां से किडनी मांगी। लेकिन मां ने स्वास्थ्य कारणों से मना कर दिया। पूजा ने बताया, “मां ने कहा कि वे खुद बीमार हैं, इसलिए नहीं दे सकतीं। उस वक्त मुझे लगा सब खत्म हो गया।” लेकिन सास बीनम देवी (55) ने हार नहीं मानी। उन्होंने तुरंत टेस्ट कराए। चमत्कारिक रूप से उनका ब्लड ग्रुप पूजा से मैच हो गया। बीनम ने बिना सोचे फैसला लिया, “यह मेरी बहू नहीं, अपनी बेटी जैसी है। अगर मैं नहीं बचाऊंगी, तो कौन करेगा?”
बीनम का यह कदम परिवार के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं था। अश्विनी ने कहा, “मां ने कहा कि किडनी देना उनका फर्ज है। वे 55 साल की हैं, लेकिन पूरी फिटनेस के साथ आगे आईं।” डॉक्टरों ने भी सराहना की। राम मनोहर लोहिया अस्पताल के डॉ. अरुण कुमार ने बताया, “सास का डोनेशन रेयर केस है। टेस्ट में सब नॉर्मल आया। सर्जरी से पहले हमने कई चेकअप किए, ताकि दोनों सुरक्षित रहें।” बीनम का बलिदान न सिर्फ पूजा की जान बचाया, बल्कि पूरे परिवार को एकजुट कर दिया।

सफल सर्जरी और रिकवरी
13 सितंबर 2025 को लखनऊ के राम मनोहर लोहिया इंस्टीट्यूट में सर्जरी हुई। चार घंटे की इस प्रक्रिया में सास की एक किडनी सफलतापूर्वक ट्रांसप्लांट हो गई। डॉ. अरुण कुमार ने कहा, “ऑपरेशन बिल्कुल स्मूथ रहा। पोस्ट-ऑपरेटिव केयर में दोनों महिलाएं तेजी से रिकवर कर रही हैं।” कुल खर्च 30 लाख रुपये आया, जिसमें दवाइयां, स्टे और फॉलो-अप शामिल हैं। परिवार ने उधार और रिश्तेदारों की मदद से इंतजाम किया।
सर्जरी के बाद पूजा को आईसीयू में रखा गया। अब वे नॉर्मल वार्ड में हैं और जल्द छुट्टी मिलेगी। लेकिन डॉक्टरों की सलाह है कि कम से कम एक साल तक लखनऊ में रहना होगा। नियमित चेकअप, दवाइयां और डाइट पर नजर रखनी पड़ेगी। अश्विनी ने बताया, “हम एटा से लखनऊ शिफ्ट हो गए हैं। नौकरी छोड़नी पड़ी, लेकिन बहू की जान बच गई तो सब कुर्बान हो सकता है।” बीनम भी रिकवर कर रही हैं। वे कहती हैं, “थोड़ा कमजोरी महसूस होती है, लेकिन खुशी इतनी है कि दर्द भूल जाती हूं।”
बहू बोली- ‘सास ने दिया दूसरा जन्म’
सर्जरी के बाद पूजा पूरी तरह भावुक हो गईं। उन्होंने बताया, “सास जी ने मेरी जान बचाई। सात महीने से मैं बिस्तर पर थी। बेटी को छू भी नहीं पाती थी। अब मैं ठीक हूं। कुछ दिनों में उसके साथ खेलूंगी, परिवार के साथ जी लूंगी। ईश्वर ऐसी सास सबको दे।” पूजा की आंखों में आंसू थे, लेकिन चेहरे पर मुस्कान। उन्होंने अपनी शादी की फोटो दिखाते हुए कहा, “यह खुशी का पल था, लेकिन सास के बिना अधूरा होता।” अश्विनी ने जोड़ा, “पत्नी की सांसें चल रही हैं, यह मां का आशीर्वाद है।”
बीनम देवी ने भी खुलकर बात की। “बहू बीमार पड़ी तो लगा अपना घर टूट रहा है। जब किसी ने किडनी नहीं दी, तो मैंने सोचा क्यों न मैं दूं। अब वो बिल्कुल ठीक है। मेरा दान सफल हो गया।” डॉ. अरुण कुमार ने तारीफ की, “जब मां-बाप ने साथ छोड़ा, तब सास-पति ने संभाला। यह प्यार की मिसाल है। मैं दुआ करता हूं कि दोनों जल्द स्वस्थ हों।”
यह घटना एटा के थाना राजा का रामपुर क्षेत्र की है। पूरा गांव इस परिवार के हौसले की तारीफ कर रहा है। पड़ोसी कहते हैं, “सास-बहू का यह रिश्ता देखकर शर्मिंदा हो जाते हैं जो झगड़े करते हैं।” परिवार अब लखनऊ में सेटल हो रहा है। अश्विनी नई नौकरी तलाश रहे हैं, ताकि इलाज चले। बेटी अब छह महीने की हो चुकी है, और पूजा उसे गोद में लेकर मुस्कुरा रही हैं। यह कहानी साबित करती है कि मुश्किलें परिवार को और मजबूत बनाती हैं। (लगभग ६७० शब्द)
राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।