Opinion Column: 1848 में दादाभाई नौरोजी द्वारा ‘द स्टूडेंट्स साइंटिफिक एंड हिस्टोरिकल सोसाइटी’ की स्थापना के साथ भारत में छात्र राजनीति की नींव पड़ी। इस तरह, भारत में छात्र राजनीति का इतिहास 170 वर्ष से भी अधिक पुराना है। आजादी से पहले और बाद में समय-समय पर छात्र राजनीति का स्वरूप बदलता रहा। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लाला लाजपत राय, सुभाष चंद्र बोस, जवाहरलाल नेहरू और भगत सिंह जैसे नेताओं ने युवा शक्ति और छात्र शक्ति को विशेष महत्व दिया।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपने आंदोलनों में युवाओं और छात्रों को बड़े पैमाने पर जोड़ा। गुजरात विद्यापीठ, काशी विद्यापीठ और इलाहाबाद विश्वविद्यालय जैसे शैक्षणिक केंद्र छात्र आंदोलनों के गढ़ बने। गांधीजी के अनुयायी भी छात्रों पर भरोसा करते थे, और जयप्रकाश नारायण का आंदोलन इसका जीवंत उदाहरण है। मंडल आयोग के खिलाफ आंदोलन में भी छात्र शक्ति का महत्वपूर्ण योगदान रहा।

छात्र संघ को भविष्य की राजनीति की पाठशाला कहा जाता है। छात्र राजनीति से निकलकर देश के विभिन्न राजनीतिक मंचों पर अपनी पहचान बनाने वाले नेताओं में कई बड़े नाम शामिल हैं। जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर छात्र शक्ति ने जो तेवर दिखाए, उसने देश की दशा और दिशा बदल दी। 1960 से 1980 के दशक के बीच देश के विभिन्न मुद्दों पर छात्र शक्ति ने आंदोलनों की अगुआई की। 1974 का जेपी आंदोलन और असम छात्र आंदोलन इसके प्रमुख उदाहरण हैं।
छात्र राजनीति से निकले नेताओं में पूर्व राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन, पूर्व प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह, चंद्रशेखर, हेमवती नंदन बहुगुणा, लालू प्रसाद यादव, ममता बनर्जी, अशोक गहलोत, शरद यादव, सुशील मोदी, अमित शाह, अरुण जेटली, सीताराम येचुरी, मनोज सिन्हा, रेखा गुप्ता, विजय गोयल, विजेंद्र गुप्ता, सर्वानंद सोनोवाल, अश्विनी चौबे और महेंद्र नाथ पांडे जैसे दिग्गज शामिल हैं।

उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद विश्वविद्यालय, लखनऊ विश्वविद्यालय, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ और गोरखपुर विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों से दर्जनों छात्र नेता निकले, जिन्होंने प्रदेश और देश की राजनीति में महत्वपूर्ण योगदान दिया। लेकिन वर्तमान में उत्तर प्रदेश के किसी भी विश्वविद्यालय में छात्र संघ चुनाव नहीं हो रहे। इसके कई कारण हो सकते हैं, परंतु न तो शासन और न ही विश्वविद्यालयों के कुलपति इसका कोई स्पष्ट जवाब दे पा रहे हैं।
छात्र संघ वह मंच है, जिसके माध्यम से जमीनी स्तर के आंदोलनकारी छात्र नेताओं का उदय होता है, जो छात्रों और समाज के विभिन्न मुद्दों पर संघर्ष करते हैं। आज जब दिल्ली विश्वविद्यालय, पंजाब विश्वविद्यालय, पटना विश्वविद्यालय और दक्षिण भारत के विश्वविद्यालयों में छात्र संघ चुनाव हो रहे हैं, तो सवाल उठता है कि उत्तर प्रदेश में ये चुनाव क्यों बंद हैं?
15 अगस्त 2024 को लाल किले की प्राचीर से अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि वे एक लाख गैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले युवाओं को राजनीति में लाएंगे। लेकिन सवाल यह है कि ऐसे युवाओं की खोज का माध्यम क्या होगा? क्या यह चयन पढ़ाई, भाषण कौशल, निबंध प्रतियोगिता या शैक्षिक आधार पर होगा? या फिर उन युवाओं पर भरोसा किया जाएगा, जिनमें जोश, जुनून और सामाजिक मुद्दों पर लड़ने की तत्परता हो?
छात्र राजनीति न केवल नेतृत्व को निखारती है, बल्कि लोकतंत्र को भी मजबूत करती है। उत्तर प्रदेश में छात्र संघ चुनावों की बहाली न केवल छात्रों की आवाज को मंच देगी, बल्कि भविष्य के नेतृत्व को तैयार करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
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शिवजनक गुप्ता, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के वर्तमान छात्रसंघ उपाध्यक्ष हैं। 2022 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के पैनल से छात्रसंघ का चुनाव जीतकर वे लगातार छात्र हितों के लिए सक्रिय रूप से कार्यरत हैं। अकादमिक रूप से, वे मास कम्युनिकेशन के परास्नातक छात्र हैं।
