प्रमुख बिंदु-
जम्मू और कश्मीर: श्रीनगर की मशहूर हजरतबल (Hazratbal) दरगाह में राष्ट्रीय प्रतीक अशोक चिह्न को तोड़ने की घटना ने पूरे देश में हंगामा मचा दिया है। इस घटना ने न केवल धार्मिक भावनाओं को भड़काया, बल्कि राष्ट्रीय सम्मान और कानून-व्यवस्था पर भी सवाल उठाए हैं। जम्मू-कश्मीर पुलिस ने इस मामले में त्वरित कार्रवाई करते हुए 26 लोगों को हिरासत में लिया है और कई अन्य से पूछताछ जारी है। लेकिन सवाल यह है कि इस अपराध की सजा क्या होगी? भारतीय कानून इस बारे में क्या कहता है?
घटना का पूरा विवरण
श्रीनगर में स्थित हजरतबल दरगाह, जो इस्लाम के पवित्र स्थलों में से एक है, हाल ही में नवीनीकरण और सौंदर्यीकरण के दौर से गुजरी। इस दौरान वहां लगाए गए एक बोर्ड पर भारत का राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ उकेरा गया था। कुछ लोगों ने इसे इस्लामी सिद्धांतों के खिलाफ बताते हुए पत्थरों से तोड़ दिया। उनका तर्क था कि धार्मिक स्थल पर किसी भी तरह की मूर्ति या आकृति इस्लाम के खिलाफ है।
यह घटना शुक्रवार, 5 सितंबर 2025 को ईद-ए-मिलाद-उन-नबी के मौके पर हुई, जिसके बाद सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल होने से मामला और तूल पकड़ गया। जम्मू-कश्मीर पुलिस ने तुरंत कार्रवाई शुरू की और अब तक 2 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया है। पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 300, 352, 191(2), 324(4), 196, 61(2) और राष्ट्रीय सम्मान अपमान निवारण अधिनियम, 1971 की धारा 2 के तहत मामला दर्ज किया है।

कानून क्या कहता है?
भारत में राष्ट्रीय प्रतीकों की रक्षा के लिए सख्त कानून मौजूद हैं। राष्ट्रीय सम्मान अपमान निवारण अधिनियम, 1971 के तहत, यदि कोई व्यक्ति सार्वजनिक स्थान पर राष्ट्रीय प्रतीक जैसे अशोक चिह्न, राष्ट्रीय ध्वज या संविधान का अपमान करता है, तो उसे तीन साल तक की जेल, जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है। इसके अलावा, राष्ट्रीय प्रतीक (अनुचित उपयोग पर रोक) अधिनियम, 2005 के अनुसार, राष्ट्रीय प्रतीक का अनुचित उपयोग या तोड़फोड़ करने पर दो साल तक की कैद और 5,000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। इस मामले में, चूंकि अशोक चिह्न को जानबूझकर तोड़ा गया, इसलिए आरोपियों पर दोनों कानूनों के तहत कार्रवाई हो सकती है।
इसके साथ ही, भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 196, जो विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने से संबंधित है, और धारा 352, जो सार्वजनिक शांति भंग करने से जुड़ी है, भी लागू की गई हैं। कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यह मामला केवल राष्ट्रीय प्रतीक के अपमान तक सीमित नहीं है, बल्कि सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान और सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने का भी है। इसलिए, दोषियों को कड़ी सजा मिलने की संभावना है।

सियासी बवाल और आरोप-प्रत्यारोप
इस घटना ने जम्मू-कश्मीर में सियासी तूफान खड़ा कर दिया है। जम्मू-कश्मीर वक्फ बोर्ड की अध्यक्ष और बीजेपी नेता डॉ. दरख्शां अंद्राबी ने इस घटना को “राष्ट्रीय प्रतीक पर हमला” और “आतंकी कार्रवाई” करार देते हुए केंद्र सरकार से सख्त कार्रवाई की मांग की है। उन्होंने नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) पर इस घटना के पीछे साजिश का आरोप लगाया।
वहीं, मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती ने वक्फ बोर्ड पर धार्मिक भावनाओं को भड़काने का आरोप लगाया। उमर अब्दुल्ला ने सवाल उठाया कि जब देशभर में धार्मिक स्थलों पर राष्ट्रीय प्रतीक का उपयोग नहीं होता, तो हजरतबल में यह क्यों लगाया गया? एनसी ने भी वक्फ बोर्ड की चेयरपर्सन पर निशाना साधते हुए इसे धार्मिक स्थल की पवित्रता का अपमान बताया।
जनता का विरोध
हजरतबल दरगाह की इस घटना ने जनता में भी तीखी प्रतिक्रिया पैदा की है। जम्मू में हजारों लोग सड़कों पर उतर आए और राष्ट्रीय प्रतीक के अपमान के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की। प्रदर्शनकारियों का कहना था कि अशोक चिह्न भारत की एकता और गौरव का प्रतीक है, और इसका अपमान बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। सोशल मीडिया पर भी इस घटना को लेकर तीखी बहस छिड़ी हुई है। कुछ लोग इसे धार्मिक भावनाओं से जोड़कर देख रहे हैं, तो कुछ इसे राष्ट्रीय सम्मान पर हमला बता रहे हैं। इस बीच, पुलिस का कहना है कि जांच पूरी होने के बाद दोषियों को कड़ी सजा दिलाने के लिए हरसंभव कोशिश की जाएगी।
राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
