राष्ट्रपति ने दी हरी झंडी: वक्फ (संशोधन) बिल, 2025 पर लगी मुहर
प्रमुख बिंदु-
नई दिल्ली: वक्फ संशोधन विधेयक, 2025 (Waqf Amendment Bill) को लेकर महीनों से चल रही बहस और विवाद के बाद आखिरकार इसे राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिल गई है। संसद के दोनों सदनों में तीखी नोकझोंक और गरमागरम बहस के बाद पारित हुए इस विधेयक ने अब कानून का रूप ले लिया है। लोकसभा और राज्यसभा से पारित होने के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शनिवार देर रात इस विधेयक को अपनी मंजूरी दे दी।
इसके साथ ही केंद्र सरकार ने अधिसूचना जारी कर इसे लागू कर दिया। इस नए कानून का नाम है- यूनिफाइड वक्फ मैनेजमेंट, एम्पावरमेंट, एफिशिएंसी एंड डेवलपमेंट अधिनियम, 2025। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह कानून वक्फ बोर्ड की अनियंत्रित शक्तियों पर लगाम लगाएगा या फिर नए विवादों को जन्म देगा? आइए, इसके प्रमुख प्रावधानों और प्रभावों को विस्तार से समझते हैं।
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दोनों सदनों में देर रात तक हुई चर्चा
वक्फ संशोधन विधेयक को लोकसभा ने 3 अप्रैल को रात 1:56 बजे बहुमत से पारित किया था। इसके पक्ष में 288 सांसदों ने वोट दिया, जबकि 232 ने विरोध में। चर्चा 12 घंटे से ज्यादा चली। इसके बाद राज्यसभा में 4 अप्रैल को देर रात 2:30 बजे तक चली 13 घंटे की बहस के बाद इसे मंजूरी मिली। राज्यसभा में मत-विभाजन हुआ, जिसमें 128 सांसदों ने समर्थन और 95 ने विरोध किया।
दोनों सदनों में विपक्ष के संशोधन प्रस्ताव खारिज हो गए। इस विधेयक को पिछले साल अगस्त में लोकसभा में पेश किया गया था, जिसके बाद इसे संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेजा गया। जेपीसी ने 6 महीने तक सुझावों पर विचार किया और 27 जनवरी को इसे मंजूरी दी। फिर केंद्रीय कैबिनेट ने फरवरी में इस पर मुहर लगाई।
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क्या हैं इस कानून के बड़े बदलाव?
यह कानून वक्फ अधिनियम, 1995 में कई बड़े संशोधन लेकर आया है। इसके तहत वक्फ बोर्ड की मनमानी पर रोक लगाने और पारदर्शिता लाने का दावा किया जा रहा है। कुछ प्रमुख प्रावधान इस प्रकार हैं:
- कोई सरकारी संपत्ति वक्फ की नहीं: अब किसी भी सरकारी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित नहीं किया जा सकेगा। पुराने दावों को भी खत्म कर दिया जाएगा। इसका मतलब है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) संरक्षित स्मारकों पर वक्फ का दावा अब एक झटके में खत्म हो जाएगा।
- गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति: वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद में अब गैर-मुस्लिम सदस्य शामिल होंगे। साथ ही, दो महिला सदस्यों की नियुक्ति अनिवार्य होगी। इस्लामिक विशेषज्ञ का होना भी जरूरी होगा। यह कदम समावेशिता को बढ़ावा देने के लिए उठाया गया है।
- संपत्ति दान के लिए सख्त नियम: अब केवल वही व्यक्ति वक्फ को संपत्ति दान कर सकेगा, जो कम से कम 5 साल से इस्लाम का पालन कर रहा हो। साथ ही, दान देने वाले को संपत्ति का वैध मालिक होना जरूरी है।
- आदिवासी इलाकों में प्रतिबंध: संविधान की 5वीं और 6ठी अनुसूची के तहत आदिवासी बहुल क्षेत्रों—like पूर्वोत्तर, झारखंड, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, गुजरात आदि—में जमीन या संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित नहीं किया जा सकेगा। यह आदिवासियों के हितों की रक्षा के लिए किया गया है।
- महिलाओं को संपत्ति का अधिकार: वक्फ-अल-औलाद (पारिवारिक वक्फ) में अब महिलाओं को भी उत्तराधिकार का हक मिलेगा। विधवा, तलाकशुदा और अनाथ महिलाएं भी अपनी पारिवारिक संपत्ति में हिस्सेदार होंगी।
- सत्यापन और पारदर्शिता: किसी भी संपत्ति को वक्फ घोषित करने से पहले उसका सत्यापन अनिवार्य होगा। जिला कलेक्टर सर्वेक्षण कर स्वामित्व सुनिश्चित करेगा। अगर सत्यापन में संपत्ति वैध पाई गई, तो वह वक्फ की रहेगी, लेकिन विवादित या सरकारी संपत्ति होने पर दावा खत्म हो जाएगा।
- ऑडिट और ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन: जिन वक्फ संस्थाओं की सालाना आय 1 लाख रुपये से ज्यादा है, उन्हें ऑडिट करवाना होगा। सभी वक्फ संपत्तियों का विवरण 6 महीने में केंद्रीय वक्फ पोर्टल पर दर्ज करना अनिवार्य होगा।
- परिसीमा अधिनियम लागू: अब वक्फ संपत्तियों पर परिसीमा अधिनियम, 1963 लागू होगा, जिससे लंबे समय तक चलने वाले अदालती मामले कम होंगे।
क्या होगा असर?
इस कानून से वक्फ बोर्ड की अनियंत्रित शक्तियों पर लगाम लगने की उम्मीद है। सरकार का दावा है कि यह गरीब मुस्लिमों, महिलाओं और पिछड़े वर्गों को फायदा पहुंचाएगा। लेकिन विपक्ष और मुस्लिम संगठनों का कहना है कि यह धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला है। उनका आरोप है कि “वक्फ बाय यूजर” की अवधारणा खत्म होने से मस्जिदों, कब्रिस्तानों और मदरसों पर खतरा मंडरा रहा है। साथ ही, गैर-मुस्लिमों को बोर्ड में शामिल करने से समुदाय का नियंत्रण कमजोर होगा।

सुप्रीम कोर्ट में क्यों पहुंचा मामला?
राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद इस कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में तीन बड़ी याचिकाएं दायर हुईं। कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद, AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और AAP विधायक अमानतुल्लाह खान ने अलग-अलग याचिकाओं में इसे चुनौती दी है। इनका आरोप है कि यह कानून मुस्लिम समुदाय के खिलाफ “भेदभावपूर्ण” है और संविधान में दिए गए धार्मिक स्वतंत्रता जैसे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता को खत्म करता है। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सबकी नजरें टिकी हैं।
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मुस्लिम संगठनों का गुस्सा
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने इस कानून को लेकर देशव्यापी विरोध की घोषणा की है। बोर्ड का कहना है कि वे “गलत सूचनाओं का खंडन” करेंगे और “शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन” करेंगे। AIMPLB और अन्य मुस्लिम संगठनों का मानना है कि यह कानून उनकी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान पर हमला है। कई शहरों में विरोध प्रदर्शन शुरू हो चुके हैं और इसे वापस लेने की मांग जोर पकड़ रही है।

सरकार का पक्ष
केंद्र सरकार ने इन सभी आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि यह कानून मुस्लिम समुदाय के हित में है। सरकार का तर्क है कि यह कानून वक्फ संपत्तियों में दशकों से चले आ रहे भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन को खत्म करेगा। सरकार का दावा है कि यह मुस्लिम महिलाओं को सशक्त बनाएगा और संपत्तियों का सही इस्तेमाल सुनिश्चित करेगा। सरकार ने विपक्ष पर लोगों को भड़काने और गलत जानकारी फैलाने का आरोप भी लगाया है।
कानून बनने के बाद अब इसका असली इम्तिहान लागू होने के दौरान होगा। क्या यह वक्फ संपत्तियों में पारदर्शिता लाएगा या नए विवादों को जन्म देगा? यह आने वाला वक्त बताएगा। लेकिन इतना तय है कि इस कानून ने वक्फ बोर्ड की कार्यप्रणाली और संपत्ति प्रबंधन के तौर-तरीकों में बड़ा बदलाव किया है। क्या आप भी मानते हैं कि यह कानून खेल बदलने वाला साबित होगा? अपनी राय जरूर बताएं!
राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।