शिक्षकों को नौकरी में रहने के लिए TET क्वालिफाई करना जरूरी, सुप्रीम कोर्ट का निर्देश- नहीं पास किया तो नौकरी छोड़ें या रिटायरमेंट लें!

Supreme Court Mandates TET for Teachers

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षकों के लिए एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) अब शिक्षण सेवा में बने रहने और पदोन्नति के लिए अनिवार्य होगी। जिन शिक्षकों की सेवा में 5 साल से अधिक समय बचा है, उन्हें TET पास करना होगा, अन्यथा उन्हें इस्तीफा देना होगा या अनिवार्य रिटायरमेंट लेना होगा। यह फैसला तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे राज्यों से जुड़ी याचिकाओं के आधार पर लिया गया है।

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सुप्रीम कोर्ट का फैसला

1 सितंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने शिक्षकों के लिए TET को अनिवार्य कर दिया। कोर्ट ने कहा कि कक्षा 1 से 8 तक पढ़ाने वाले सभी शिक्षकों को अपनी नौकरी में बने रहने और प्रमोशन पाने के लिए TET पास करना होगा। जिन शिक्षकों की सेवा में 5 साल से अधिक समय बचा है, उनके लिए यह नियम सख्ती से लागू होगा। अगर वे TET पास नहीं करते, तो उन्हें नौकरी छोड़नी होगी या अनिवार्य रिटायरमेंट लेनी होगी, जिसमें टर्मिनल बेनिफिट्स मिलेंगे।

हालांकि, कोर्ट ने उन शिक्षकों को राहत दी है, जिनकी सेवा में 5 साल से कम समय बचा है। ऐसे शिक्षक बिना TET पास किए अपनी सेवा जारी रख सकते हैं, लेकिन उन्हें प्रमोशन नहीं मिलेगा। यह फैसला शिक्षा की गुणवत्ता को बनाए रखने और राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (NCTE) के मानकों को लागू करने के लिए लिया गया है।

Supreme Court Mandates TET for Teachers

माइनॉरिटी संस्थानों पर सस्पेंस बरकरार

सुप्रीम कोर्ट ने माइनॉरिटी संस्थानों के लिए TET की अनिवार्यता पर अभी अंतिम फैसला नहीं सुनाया है। कोर्ट ने इस सवाल को बड़ी बेंच के पास भेज दिया है कि क्या राज्य सरकारें माइनॉरिटी संस्थानों पर TET अनिवार्य कर सकती हैं और इससे उनके संवैधानिक अधिकारों पर क्या असर पड़ेगा। यह मुद्दा इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE Act) धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक संस्थानों पर लागू नहीं होता। अब इस मामले को 7 जजों की बेंच द्वारा सुना जाएगा, जो इस विवाद को सुलझाएगी।

TET क्या है और क्यों है जरूरी?

शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) एक राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा है, जो यह तय करती है कि कोई व्यक्ति कक्षा 1 से 8 तक के बच्चों को पढ़ाने के लिए योग्य है या नहीं। इसे राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (NCTE) ने 2010 में अनिवार्य किया था। TET दो स्तरों पर आयोजित होती है:

  • पेपर 1: कक्षा 1 से 5 तक पढ़ाने के लिए।
  • पेपर 2: कक्षा 6 से 8 तक पढ़ाने के लिए।
    केंद्र सरकार CTET (Central Teacher Eligibility Test) आयोजित करती है, जबकि राज्य सरकारें STET (State Teacher Eligibility Test) करवाती हैं। यह परीक्षा शिक्षकों की योग्यता को परखने और शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए शुरू की गई थी। NCTE ने 2010 में कक्षा 1 से 8 तक के शिक्षकों के लिए न्यूनतम योग्यताओं में TET को शामिल किया था।

मामला कहां से शुरू हुआ?

यह विवाद तब शुरू हुआ जब NCTE ने 23 अगस्त 2010 को एक अधिसूचना जारी कर कक्षा 1 से 8 तक के शिक्षकों के लिए TET को अनिवार्य किया। इसके तहत शिक्षकों को TET पास करने के लिए 5 साल का समय दिया गया, जिसे बाद में 4 साल और बढ़ाया गया। कई शिक्षकों ने इस नियम के खिलाफ कोर्ट का रुख किया। मद्रास हाई कोर्ट ने जून 2025 में फैसला दिया था कि 29 जुलाई 2011 से पहले नियुक्त शिक्षकों को सेवा में बने रहने के लिए इसे पास करने की जरूरत नहीं है, लेकिन प्रमोशन के लिए यह अनिवार्य होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने अब इस फैसले को पलटते हुए TET को नौकरी में बने रहने और प्रमोशन दोनों के लिए अनिवार्य कर दिया। तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में शिक्षकों ने इस नियम का विरोध किया था, लेकिन कोर्ट ने शिक्षा की गुणवत्ता को प्राथमिकता दी।

शिक्षकों और शिक्षा क्षेत्र पर असर

इस फैसले से देशभर के लाखों शिक्षकों पर असर पड़ेगा। खासकर उन शिक्षकों पर, जो बिना TET पास किए लंबे समय से नौकरी कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में बड़ी संख्या में शिक्षक इस नियम के दायरे में आएंगे। उत्तर प्रदेश में 62,229 शिक्षकों की पदोन्नति इस विवाद के कारण रुकी हुई थी, और अब इस फैसले से उनकी स्थिति स्पष्ट होगी।

हालांकि, यह फैसला शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने में मदद करेगा, लेकिन पुराने शिक्षकों के लिए यह एक बड़ी चुनौती है। कई शिक्षक संगठनों ने इस फैसले का विरोध शुरू कर दिया है, और इसे लागू करने में राज्य सरकारों को भी कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। माइनॉरिटी संस्थानों के लिए बड़ी बेंच का फैसला इस मामले में और स्पष्टता लाएगा।

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