प्रमुख बिंदु-
सेहत डेस्क: आज के डिजिटल युग में स्मार्टफोन, टैबलेट, लैपटॉप और टीवी हमारी जिंदगी का अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं। बच्चों से लेकर बड़ों तक, हर कोई इन डिवाइसेज का इस्तेमाल दिन-रात करता है। खासकर बच्चे, जो ऑनलाइन क्लासेस, गेमिंग और कार्टून देखने में घंटों बिताते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन डिवाइसेज से निकलने वाली ब्लू लाइट (Blue Light) बच्चों की आंखों और समग्र स्वास्थ्य के लिए कितनी हानिकारक (Blue Light Side Effect) हो सकती है? हाल के शोध और विशेषज्ञों की राय के अनुसार, ब्लू लाइट से आंखों में थकान, नींद की समस्या और यहां तक कि रेटिना को नुकसान पहुंच सकता है।
Blue Light क्या है और यह क्यों हानिकारक है?
ब्लू लाइट (Blue Light) एक उच्च-ऊर्जा वाली रोशनी है, जो सूरज, एलईडी बल्ब और डिजिटल स्क्रीन जैसे स्मार्टफोन, टैबलेट और लैपटॉप से निकलती है। इसकी वेवलेंथ कम होती है, जिसके कारण यह आंखों की रेटिना तक आसानी से पहुंचती है। बच्चों की आंखें वयस्कों की तुलना में अधिक संवेदनशील होती हैं, क्योंकि उनकी आंखों का लेंस ब्लू लाइट को पूरी तरह फ़िल्टर नहीं कर पाता। लंबे समय तक ब्लू लाइट के संपर्क में रहने से उन्हें यह समस्याएं हो सकती हैं:
- लंबे समय तक स्क्रीन देखने से आंखों में थकान, सूखापन, जलन और धुंधलापन हो सकता है। इसे कंप्यूटर विजन सिंड्रोम भी कहा जाता है।
- ब्लू लाइट मेलाटोनिन हार्मोन के उत्पादन को कम करती है, जो नींद को नियंत्रित करता है। सोने से पहले स्क्रीन देखने से बच्चों की नींद की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
- लंबे समय तक ब्लू लाइट के संपर्क में रहने से रेटिना की कोशिकाओं को नुकसान पहुंच सकता है, जिससे मायोपिया (नजदीक की नजर कमजोर होना) और अन्य गंभीर समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है।
- ब्लू लाइट के कारण बच्चों में सिरदर्द और एकाग्रता में कमी जैसी समस्याएं भी देखी गई हैं।
हाल के एक अध्ययन में, मेलबर्न यूनिवर्सिटी ने पाया कि ब्लू लाइट ग्लासेज का आंखों की सुरक्षा में कोई विशेष लाभ नहीं है, बल्कि स्क्रीन टाइम कम करना और अन्य उपाय अधिक प्रभावी हैं।

बच्चों की आंखों को Blue Light से बचाने के उपाय
ब्लू लाइट (Blue Light) से पूरी तरह बचना असंभव है, लेकिन सही सावधानियों से इसके दुष्प्रभावों को कम किया जा सकता है। यहाँ कुछ आसान और प्रभावी उपाय दिए गए हैं:
- स्क्रीन टाइम सीमित करें: 2-5 साल के बच्चों को प्रतिदिन 1 घंटे से ज्यादा स्क्रीन टाइम नहीं देना चाहिए। बड़े बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम 2-3 घंटे तक सीमित करें और बीच-बीच में ब्रेक दिलाएं।
- 20-20-20 नियम अपनाएं: हर 20 मिनट में 20 सेकंड के लिए 20 फीट दूर किसी चीज को देखें। यह नियम आंखों की मांसपेशियों को आराम देता है और डिजिटल स्ट्रेन को कम करता है।
- ब्लू लाइट फ़िल्टर ग्लासेज का करें उपयोग: ब्लू लाइट फ़िल्टर चश्मे हानिकारक नीली रोशनी को 10-25% तक कम कर सकते हैं। हालांकि, इन्हें डॉक्टर की सलाह के बिना नहीं पहनना चाहिए।
- डिवाइस सेटिंग्स एडजस्ट करें: स्क्रीन की ब्राइटनेस और कंट्रास्ट को कम करें। रात में नाइट मोड या वार्म लाइट फ़िल्टर का उपयोग करें, जो ब्लू लाइट को कम करता है।
- सोने से पहले स्क्रीन से करें दूरी: सोने से 1-2 घंटे पहले बच्चों को मोबाइल, टैबलेट, या टीवी से दूर रखें। यह नींद की गुणवत्ता को बेहतर बनाएगा।
- आउटडोर गतिविधियों को दें बढ़ावा: बच्चों को रोजाना 1-2 घंटे प्राकृतिक रोशनी में खेलने के लिए प्रोत्साहित करें। यह आंखों की मांसपेशियों को मजबूत करता है और मायोपिया के जोखिम को कम करता है।
- नियमित नेत्र जांच कराएं: बच्चों की आंखों की सालाना जांच करवाएं। अगर बच्चा आंखों में दर्द, धुंधलापन, या बार-बार रगड़ने की शिकायत करे, तो तुरंत नेत्र विशेषज्ञ से संपर्क करें।

ब्लू लाइट का बच्चों की आंखों और स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है, लेकिन सही उपायों से इसे कम किया जा सकता है। माता-पिता के लिए जरूरी है कि वे बच्चों के स्क्रीन टाइम पर नजर रखें और उनकी आंखों की देखभाल को प्राथमिकता दें। हाल के शोध बताते हैं कि ब्लू लाइट फ़िल्टर ग्लासेज का प्रभाव सीमित हो सकता है, इसलिए स्क्रीन टाइम कम करना, ब्रेक लेना और प्राकृतिक रोशनी में समय बिताना अधिक प्रभावी उपाय हैं। बच्चों की आंखों को स्वस्थ रखने के लिए आज से ही इन उपायों को अपनाएं और उनके भविष्य को सुरक्षित करें।
यह लेख सामान्य जानकारी के लिए है। यूनिफाइड भारत आपको सलाह देता है कोई भी उपाय अपनाने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श अवश्य करें।

राणा अंशुमान सिंह यूनिफाइड भारत के एक उत्साही पत्रकार हैं, जो निष्पक्ष और प्रभावी ख़बरों के सन्दर्भ में जाने जाना पसंद करते हैं। वह सामाजिक मुद्दों, धार्मिक पर्यटन, पर्यावरण, महिलाओं के अधिकारों और राजनीति पर गहन शोध करना पसंद करते हैं। पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी-उर्दू में कविताएँ और ग़ज़लें लिखने के शौकीन राणा भारतीय संस्कृति और सामाजिक बदलाव के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
