6 Kashmir Terrorist Attacks in 2025: जाने कौन है सैफुल्लाह, और कैसे जैश व लश्कर ने पहुँचाई है भारत को क्षतियाँ!

Kashmir Terrorist Attacks

Kashmir Terrorist Attacks– जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले के पहलगाम में हाल ही में हुआ आतंकी हमला एक बार फिर भारत की सुरक्षा व्यवस्था और आतंक के स्रोतों पर गंभीर सवाल खड़ा करता है। इस हमले में 26 निर्दोष लोगों की जान चली गई। खुफिया एजेंसियों के अनुसार, इस हमले की साजिश पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (LeT) के शीर्ष कमांडर सैफुल्लाह कसूरी उर्फ अबू मुसा ने रची थी।

Kashmir Terrorist Attacks-आतंक का मास्टरमाइंड: सैफुल्लाह कसूर

सैफुल्लाह न केवल लश्कर का सीनियर ऑपरेशनल कमांडर है, बल्कि टीआरएफ (The Resistance Front) का भी मुख्य संचालक माना जा रहा है। Kashmir Terrorist Attacks न केवल भीषण था, बल्कि इसमें नागरिकों को निशाना बनाया गया — यह दर्शाता है कि आतंकी अब सीधी टकराव की नीति अपनाकर दहशत फैलाने की कोशिश में हैं।

कैसे हुआ Kashmir Terrorist Attacks?

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21 अप्रैल 2025 को, अनंतनाग जिले के पहलगाम क्षेत्र में तीर्थयात्रियों से भरी एक बस पर अचानक गोलियों और ग्रेनेड से हमला किया गया। हमलावरों ने घात लगाकर फायरिंग की और फिर मौके से फरार हो गए। शुरुआती जांच में पता चला कि हमले के पीछे पूरी तरह से सुनियोजित रणनीति थी। आतंकियों ने भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को चकमा देने के लिए लोकेशन और समय का चयन सावधानीपूर्वक किया था।

खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट

लाइवमिंट, इंडिया टुडे, इंडिया टीवी, स्वराज्य मैगज़ीन और वनइंडिया की रिपोर्टों के मुताबिक, इस हमले को अंजाम देने में पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा की पूरी भूमिका रही। सैफुल्लाह कसूरी, जो पाकिस्तान में सुरक्षित पनाहगाह में बैठा है, ने इस पूरी साजिश को निर्देशित किया। उसका नाम पहले भी कई आतंकी हमलों में सामने आ चुका है।

भारत की खुफिया एजेंसियों ने यह भी बताया कि हमला करने वाले आतंकियों को सीमा पार से निर्देश और आर्थिक सहायता मिल रही थी। इनमें से कुछ आतंकियों का संबंध जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों से भी है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह हमला सिर्फ एक संगठन द्वारा नहीं बल्कि आतंकी नेटवर्क के सहयोग से किया गया था।

लश्कर-ए-तैयबा: भारत में दहशत का पुराना चेहरा

लश्कर-ए-तैयबा भारत के लिए नया खतरा नहीं है। Kashmir Terrorist Attacks जैसे हमले पहले भी लश्कर ने अंजाम दिए हैं। यह संगठन 26/11 मुंबई हमलों (2008) के लिए भी जिम्मेदार रहा है जिसमें 166 लोग मारे गए थे। इसके अलावा, 2001 में संसद पर हमला, 2016 में उरी आतंकी हमला और 2018 का श्रीनगर हमला भी लश्कर से जुड़े रहे हैं।

लश्कर का मुख्यालय पाकिस्तान के मुरिदके में स्थित है और यह संगठन भारत में बार-बार आतंक फैलाने की कोशिश करता रहा है। इसका उद्देश्य जम्मू-कश्मीर को भारत से अलग करना और भारत के अंदर सांप्रदायिक तनाव फैलाना रहा है।

जैश-ए-मोहम्मद की भूमिका

जहां लश्कर-ए-तैयबा कश्मीर में सक्रिय है, वहीं जैश-ए-मोहम्मद ने भी कई बड़े आतंकी हमलों को अंजाम दिया है। 2019 का पुलवामा हमला इसका ताजा उदाहरण है, जिसमें CRPF के 40 जवान शहीद हुए थे। जैश का सरगना मसूद अजहर पाकिस्तान में खुलेआम घूम रहा है, जबकि भारत और संयुक्त राष्ट्र उसे वैश्विक आतंकवादी घोषित कर चुके हैं।

भारत की कार्रवाई और अंतरराष्ट्रीय दबाव

पुलवामा के बाद भारत ने बालाकोट एयरस्ट्राइक के जरिए पाकिस्तान में जैश के आतंकी शिविरों को निशाना बनाया था। वहीं पहलगाम हमले के बाद भी यह मांग उठ रही है कि भारत को सर्जिकल स्ट्राइक या कूटनीतिक दबाव के माध्यम से कठोर कदम उठाने चाहिए। भारत पहले ही अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को आतंक के संरक्षक के रूप में चिन्हित करने की मांग करता रहा है।

स्थानीय युवाओं का आतंक में झुकाव: चिंता का विषय

एक बड़ी चिंता यह भी है कि लश्कर और जैश जैसे संगठन सोशल मीडिया और कट्टरपंथी प्रचार के जरिए कश्मीरी युवाओं को बरगला रहे हैं और Kashmir Terrorist Attacks जैसे मंसूबों को अंजाम दे रहे हैं। टीआरएफ जैसे संगठनों का उभार इस बात का संकेत है कि आतंकी रणनीति अब लोकलाइज हो रही है। इससे न केवल घाटी में आतंक का खतरा बढ़ा है, बल्कि शांति प्रयासों को भी गहरा झटका लगा है।

राजनीतिक प्रतिक्रियाएं

घटना के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर गृहमंत्री तक ने इस हमले की कड़ी निंदा की है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा और सेना व खुफिया एजेंसियों को हरसंभव कार्रवाई की छूट दी गई है। Kashmir Terrorist Attacks के बाद जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने मृतकों के परिजनों को मुआवजा देने की घोषणा की है, जबकि घायल लोगों के इलाज का खर्च राज्य सरकार उठा रही है।

समाधान की राह

विशेषज्ञ मानते हैं कि सिर्फ सैन्य या पुलिसिया कार्रवाई से आतंकवाद का स्थायी समाधान नहीं निकल सकता। इसके लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग, पाकिस्तान पर आर्थिक व कूटनीतिक दबाव और स्थानीय युवाओं को मुख्यधारा से जोड़ने की रणनीति ज़रूरी है। शिक्षा, रोज़गार और संवाद को प्राथमिकता देकर ही आतंक के नेटवर्क को जड़ से समाप्त किया जा सकता है।

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