2 Years of Manipur Violence: जले घर, टूटी उम्मीदें और अनिश्चित भविष्य

2 Years of Manipur Violence

60,000 से अधिक लोग अब भी बेघर, चुनाव नहीं हुए, राज्य अब भी दो हिस्सों में बँटा; केंद्र सरकार की चुप्पी पर सवाल

4 मई 2025 | इंफाल– Manipur Violence — 3 मई 2023 को मणिपुर की ज़मीन पर जो चिंगारी भड़की, उसने देखते-देखते पूरे राज्य को आग की लपटों में झोंक दिया। मेइती और कुकी समुदायों के बीच पनपा यह संघर्ष आज दो वर्ष पूरे कर चुका है, लेकिन राज्य अब भी अशांत है। हजारों परिवार अब भी राहत शिविरों में रह रहे हैं, स्कूल बंद हैं, अस्पताल बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं, और सबसे बड़ी बात — शांति अब भी कोसों दूर है।

Manipur Violence: कैसे शुरू हुई हिंसा?

Manipur Violence की जड़ें उस याचिका में हैं, जिसमें मेइती समुदाय ने खुद को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा देने की मांग की थी। 19 अप्रैल 2023 को मणिपुर हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को इस मांग पर विचार करने को कहा। इसका तीखा विरोध कुकी और नागा जनजातियों ने किया, जो पहले से ही पहाड़ी क्षेत्रों में ST दर्जे के तहत विशेष अधिकारों का लाभ उठाते हैं।

3 मई 2023 को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन द्वारा आयोजित “आदिवासी एकता मार्च” में हिंसा भड़क उठी। इंफाल घाटी और पहाड़ी जिलों में देखते ही देखते झड़पें फैल गईं। भीड़ ने घर जलाए, धार्मिक स्थलों को निशाना बनाया और कई इलाकों को पूरी तरह बर्बाद कर दिया।

Manipur Violence: दो साल, 258 मौतें और 60,000 से ज़्यादा विस्थापित

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, Manipur Violence में अब तक 258 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और लगभग 60,000 लोग अपने घर छोड़कर राहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं। मणिपुर आज भी दो भागों में स्पष्ट रूप से बँटा हुआ है — मेइती बहुल इंफाल घाटी और कुकी बहुल पहाड़ी क्षेत्र।

दैनिक जागरण की रिपोर्ट बताती है कि हजारों परिवारों को अभी भी उनके गांवों में वापस लौटने की अनुमति नहीं मिली है। डर, अविश्वास और असुरक्षा का माहौल राज्य की सबसे बड़ी चुनौती बन चुका है।

सरकार की विफलता: न चुनाव हुए, न समाधान

राज्य में आखिरी विधानसभा चुनाव 2022 में हुए थे। Manipur Violence के बाद 2023 में स्थानीय निकाय चुनाव स्थगित कर दिए गए और उसके बाद से अब तक कोई लोकतांत्रिक प्रक्रिया नहीं हो सकी है। कांग्रेस ने हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी पर हमला बोलते हुए सवाल किया कि दो साल में न तो पीड़ितों को न्याय मिला, न ही राज्य में चुनाव हो पाए।

सीएम एन. बीरेन सिंह पर हिंसा को रोकने में असफल रहने का आरोप लगने के बाद फरवरी 2025 में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया, लेकिन हालात में कोई ठोस सुधार देखने को नहीं मिला।

Manipur Violence: सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप और जांच की धीमी रफ्तार

Manipur Violence के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर सरकार से 6,500 से अधिक FIR की जानकारी मांगी और जांच की धीमी रफ्तार पर तीखा सवाल किया। कोर्ट ने सीबीआई को कई मामलों की जिम्मेदारी सौंपी, लेकिन पीड़ितों का अब भी कहना है कि अधिकांश आरोपी खुले घूम रहे हैं और न्याय की प्रक्रिया धीमी है।

मार्च 2025 में सुप्रीम कोर्ट के छह न्यायाधीशों की टीम ने राहत शिविरों का दौरा किया और हालात को “अस्वीकार्य” बताया। उन्होंने केंद्र सरकार को निर्देश दिए कि राज्य में जल्द से जल्द शांति बहाल की जाए और विस्थापितों की पुनर्वास योजना को प्राथमिकता दी जाए।

आरएनसी और फ्री मूवमेंट रेजीम पर फिर उठा विवाद

हाल ही में मेइती और थाडो (कुकी उप-जनजाति) समुदायों ने अलग-अलग मंचों से यह मांग दोहराई कि राज्य में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) लागू किया जाए। साथ ही, “फ्री मूवमेंट रेजीम” (FMR) की समाप्ति की भी मांग हो रही है, जिसके तहत म्यांमार सीमा से जुड़े गांवों के लोग बिना वीज़ा के मणिपुर में आ-जा सकते हैं।

मेइती समुदाय का आरोप है कि बड़ी संख्या में म्यांमार से कुकी-चिन लोग मणिपुर में घुसपैठ कर रहे हैं, जो हिंसा को और भड़का रहे हैं। हालांकि कुकी संगठनों ने इसे राजनीति से प्रेरित करार दिया है।

मानवीय संकट: राहत शिविरों में नारकीय हालात

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, इंफाल, चुराचांदपुर, कांगपोकपी और बिष्णुपुर जिलों में बने राहत शिविरों में लोगों के पास न पर्याप्त दवा है, न शिक्षा, न रोजगार। महिलाएं और बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। कई युवाओं की पढ़ाई रुक चुकी है और स्वास्थ्य सेवाओं की घोर कमी है।

कुछ संगठनों ने दावा किया कि सरकार की राहत सामग्री केवल एक समुदाय विशेष तक सीमित है, जिससे सामाजिक खाई और बढ़ रही है।

बंद और विरोध: दो साल की बरसी पर टकराव

Manipur Violence: 3 मई 2025 को मणिपुर में दो साल पूरे होने पर कुकी समुदाय ने “ब्लैक डे” मनाया, वहीं मेइती समुदाय ने अलग-अलग स्मारकों पर श्रद्धांजलि दी। इस दौरान कुछ जिलों में तनाव की स्थिति रही और सड़कों पर अघोषित बंद का असर देखा गया। इंफाल में हजारों की भीड़ ने प्रदर्शन कर जल्द से जल्द स्थायी समाधान की मांग की।

राजनीतिक आवाजें: समाधान की पहल लेकिन भरोसा नहीं

केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने हाल ही में कहा, “सरकार शांति चाहती है, लेकिन दोनों समुदायों को हथियार छोड़कर वार्ता के लिए आगे आना होगा।” हालांकि कुकी संगठनों ने कहा कि जब तक उनके खिलाफ चल रहे दमनात्मक अभियान नहीं रुकते, वे किसी बातचीत का हिस्सा नहीं बन सकते।

वहीं, मेइती समुदाय के समूह ‘अरामबाई तेंगगोल’ ने कुकी-चिन समूहों पर “नार्को-आतंकवाद” फैलाने का आरोप लगाया, जिससे दोनों समुदायों के बीच वैमनस्य और गहराता जा रहा है।

खेल और संस्कृति भी प्रभावित

Manipur Violence की आंच खेल और सांस्कृतिक जीवन पर भी पड़ी है। भारत के दो प्रसिद्ध फुटबॉल खिलाड़ी — चिंगलेनसाना सिंह और सेम्बोई हाओकिप — इस संघर्ष के कारण खेल से दूर हो चुके हैं और अपने परिवारों की सुरक्षा में लगे हैं।

अब भी उम्मीद बाकी है?

Manipur Violence ने यह दिखा दिया है कि जातीय असंतुलन, राजनीतिक असंवेदनशीलता और प्रशासनिक विफलता किस तरह एक पूरे राज्य को वर्षों पीछे धकेल सकती है। आज, जब मणिपुर दो साल बाद भी जल रहा है, सवाल यह है — क्या अब भी कोई रास्ता है जहां से हम वापस सामान्यता की ओर लौट सकें?

उत्तर शायद ‘हां’ में है, लेकिन इसके लिए आवश्यक है — निष्पक्ष जांच, सभी समुदायों को न्याय, और सच्चे लोकतांत्रिक संवाद की बहाली।

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